अनुनाद

मैं नहीं जा रही स्‍कूल /ओरहान पामुक/ अनुवाद सिद्धेश्‍वर सिंह

मैं स्कूल नहीं जा रही हूँ। मुझे ठंड लग रही है। स्कूल में मुझे कोई भी पसंद नहीं करता।

मैं स्कूल नहीं जा रही हूँ। क्योंकि वहाँ दो बच्चे हैं। वे मुझसे बड़े हैं। वे मुझसे तगड़े भी हैं।जब मैं उनके पास से गुजरती हूँ तो वे अपनी बाहें फैलाकर मेरा रास्ता छेंक लेते हैं। मैं डर गई हूँ।

मैं डर गई हूँ। मैं स्कूल नहीं जा रही हूँ। स्कूल में समय जैसे रूक जाता है। सारी चीजें बाहर छूट जाती हैं ; सकूल के गेट के बाहर।

घर में मेरा कमरा है। घर में माँ है। घर में पिता हैं। घर में मेरे खिलौने हैं और बॉलकनी में चिड़ियाँ हैं। जब मैं स्कूल में होती हूँ तो इन सबके बारे में सोचती रहती हूँ। मुझे रोना आ जाता है। मैं  खिड़की के बाहर आसमान देखने लग पड़ती हूँ। वहाँ बादल तैरते होते हैं।

मैं स्कूल नहीं जा रही क्योंकि मुझे वहाँ की कोई भी चीज पसंद नहीं।

एक दिनकी बात है। मैंने एक पेड़ का चित्र बनाया। मेरी टीचर ने कहा – यह सचमुच का पेड़ लग रहा है ; शाबाश। इसके बाद मैंने दूसरा चित्र बनाया। इस दूसरे वाले पेड़ पर एक भी पत्ती नही थी। इसके बाद वे बच्चे मेरे पास आये और मेरा मज़ाक उड़ाने लगे।

मैं स्कूल नहीं जा रही हूँ। जब मैं रात में बिस्तर पर जाती हूँ तो अगले दिन स्कूल जाने बारे में सोचने लगती हूँ; यह डरावना होता है। मैं कहती हूँ – ‘मैं स्कूल नहीं जा रही।’ वे कहते हैं – ‘तुम ऐसा कैसे कह सकती हो। जाते हैं; सब लोग स्कूल जाते हैं।’

सब लोग? तो जाने दो सब लोगों को। अगर  मैं घर में रहूँगी तो ऐसा क्या हो जाएगा? मैं कल तो गई थी – गई थी ना? अगर मैं कल न जाऊं और उसके अगले वाले दिन जाऊं तो?

अगर मैं घर पर रहूँ। अगर अपने कमरे में रहूँ। अगर मैं कहीं भी रहूँ ; बस स्कूल में न रहूँ तो कैसा रहेगा !

मैं स्कूल नहीं जा रही हूँ। मेरी तबीयत ठीक नहीं है। तुम सबको यह दिखता नहीं है क्या? जब भी कोई स्कूल का नाम लेता है मैं खुद को बीमार महसूस करने लग जाती हूँ। मेरे पेट में दर्द होने लगता है और दूध तक नहीं पी पाती हूँ।

मैं वह दूध नहीं पी पाऊँगी। मैं कुछ खा भी नहीं पाऊँगी और स्कूल तो जाने से रही। मेरा मन खराब है। मुझे कोई पसंद नहीं करता।वहाँ वे दो बच्चे हैं जो बगल से गुजरने पर बाहें फैलाकर मेरा रास्ता छेंक लेते हैं।

मैं टीचर के पास गई। टीचर ने कहा – ‘तुम मेरा पीछा क्यों कर रही हो?’ अगर तुम गुस्सा न करो तो एक बात  बोलूँ। मैं हमेशा टीचर के पीछे – पीछे जाती हूँ और टीचर हर बार एक ही बात कहती है –  ‘तुम मेरा पीछा मत करो।’

मैं स्कूल नहीं जा रही हूँ, अब कभी नहीं जाने वाली। क्योंकि मैं स्कूल नहीं जाना चाहती ; बस्स।

जब रिसेस की छुट्टी होती है तो मैं बाहर नहीं जाना चाहती। इस समय सब मुझे भूल जाते हैं और वे आपस में मिलकर दौड़ना शुरू कर देते हैं।टीचर मुझे घूरकर देखती है। वह मुझे अच्छी भी नहीं लगती कि में उससे बोलूँ। मैं स्कूल नहीं जाना चाहती। वहाँ एक बच्चा है जो मुझे पसंद करता है। एक अकेला वही है जो मुझे प्यार से देखता है। ये बात किसी से कहना मत। वैसे, मैं उस बच्चे को ढंग से पसंद भी नहीं करती।

मैं वहां अकेले चुप बैठी रहती हूँ। मुझे बहुत अकेलापन लगता है। आँसुओं से मेरे गाल भीगने लगते हैं। मैं स्कूल को बिल्कुल पसंद नहीं करती। मैं कह रही हूँ कि मैं स्कूल नहीं जाना चाहती। सुबह हुई नहीं कि वे मुझे स्कूल ले जाते हैं। मैं मुस्कुरा भी नहीं सकती। मैं बिल्कुल नाक की सीध में सामने की ओर देखती रहती हूँ। मैं रोना चाहती हूँ। मैं अपनी पीठ पर फौजियों के जैसा बड़ा और भारी बस्ता लिए पहाड़ चढ़ती जाती हूँ और अपनी निगाह अपने नन्हे पैरों पर गड़ाए पहाड़ चढ़ती चली जाती हूँ। सब कुछ बहुत भारी है : पीठ पर बस्ता और पेट में गरम दूध। मैं रोना चाहती हूँ।

मैं स्कूल के अंदर कदम रखती हूँ। लोहे का काला गेट मेरे पीछे बंद होता है। मैं चिल्लाती हूँ – ‘मम्मी देखो,तुमने मुझे भीतर छोड़ दिया है।’ इसके बाद मैं अपनी कक्षा में जाती हूँ और बैठ जाती हूँ। बाहर बादल दिख रहे हैं।मैं उन्हीं बादलों के जैसा बादल हो जाना चाहती हूँ। इरेजर्स, नोटबुक्स और पेन वगैरह ; ये जो सब चीजें हैं न – इन्हें  चुग्गा बनाकर मुर्गियों को खिला दो !

( ओरहान पामुक की किताब ‘Other Colours’ के अध्याय ‘ I am  not going to school’ का हिन्दी अनुवाद)

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