
हमारी देह की गन्ध अलग थी
हमारा पसीना अलग था
नाक अलग थी
क्या था
हम घुटनों पर बैठ सकते थे
हाँ
हमने जांघो पर भार दिया
हाँ
पिंडलियां उठाईं और दौड़ पड़े
हाँ हाँ हाँ
हाँ हमने वो सुरक्षित कोना छोड़ दिया पहले अवसर पर
हम बन्द रसोइयों में रोशनी की घुटन जानते थे
हम बीच चौक पर कूदे
हमें ज्यामिती इतनी आती थी कि हम सभी कोनों से
समान दूरी पर रहना चाहते थे
सबसे आखिर में खाने को जैसे
सबसे प्यारी चीज़
हमें अंततः सब सुंदरता चाहिए थी
हमारे लिए
दुनिया का सबसे सुन्दर कोना
वही है आज भी
जहाँ तुनककर किसी घरवाले से
एक छोटा बच्चा सुबकता छुपा है
गुनता है मन ही मन में विद्रोह
नहीं जाना कल से स्कूल
नहीं पीना दूध
फिर धूल पर दीवार की उँगलियाँ छापता मिल जाता है माँ को
माँ धमकाती है
उँगलियाँ नहीं मिटाती
खाने के पीले डब्बे में चिलबिल छुपाती है
वही है जहाँ
आज भी पांच पोरों के निशान दर्ज हैं
अपनी तस्वीर बनाने में
वही है जहाँ
इतनी दही में पूरे सन्सार को दो हाथों में बाँध लेने की गुदगुदी
घड़ी उड़ाने की पहली लाल शर्म
वही है जहाँ तारों की पिछली गिनती टूटी थी
वही है जहाँ थाली में सबसे फेवरेट दादा के नाम का कौर छूट गया था
वही है जहाँ
खेल भर छुपे होने की गर्म सांस
ठंडी हो गई अपनी बारी के इंतज़ार में
वही है जहाँ साइकिल से भरपूर नाप आए थे संसार
एक तरफा प्रेम के
हाँ भई हाँ
हम सबसे प्यारी चीज़ खाने के इंतज़ार में
इन कोनों को छोड़कर उड़े
हम बीच चौक पर कूदे मगर
हाशिये पर गिरे
किसी नियम को तोड़ने के नहीं
हम जमात की गिनती छोड़ने के अपराधी
हम बोलियों से बहिष्कृत लोग
हमें भाषा ने भी नहीं अपनाया
इशारों ने साथ दिया यदा कदा ही
हमारी भौं को अक्सर भृकुटी समझा गया
होठों की थरथराहट को
मुलायमियत का दम्भ
मिमियाहट पर कान नहीं उठे
हमारी गुर्राहट नापी गई
हम घेर नहीं सके स्वागत की गोलाई
सीने से उनके अपने हाथ लगे थे
कभी
हाँ ये माना
हमने भी अपने हाथ पीछे बाँध रक्खे थे
हमें हमारे कोनों के आस-पास होने का मुग़ालता था
हमारा जाना
मायके से बेटी का जाना नहीं था
हाँ ये भी सच है कि हमारा आना
बहू का आना नहीं था
ये उतनी बड़ी त्रासदी का घटना नहीं था मगर
क्या करें कि हमारे लिए भी
सबसे बुरा नींद का न आना नहीं है आज भी
सबसे बुरा दुनिया के उन सबसे सुन्दर कोनों में
अजनबी हो जाना है!
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