मूलत: ये अनुवाद kritya international poetry festival के लिए किए गए थे, प्रिंट में ये ‘कथादेश ‘में आए। दुष्यंत हिंदी के चर्चित कथाकार और कवि हैं। इन्होंने फिल्मों के लिए भी लेखन किया, जो चर्चा में रहा है। अनुनाद के पाठक पहले भी उन्हें यहां पढ़ चुके हैं। अनुनाद ने अपने पुराने लेखक साथी दुष्यंत से इन कविताओं के लिए अनुरोध किया था। इस अनुरोध का मान रखने के लिए अनुनाद उनका आभार व्यक्त करता है।
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कोस्टारिका में 1949 में जन्में ओस्वाल्दो अस्सी के दशक में कवि के तौर पर पहचाने जाने लगे। उसके बाद की लेटिन अमेरिकन कवियों की पीढी उन्हें अपना आदर्श मानती है। अब तक 6 कविता संग्रहों के प्रकाशन के साथ उनकी ख्याति दुनिया भर में हुई है और दुनिया भर के कविता उत्सवों में वे भागीदार रहे हैं, लगातार बुलाए जाते हैं। वे कई समवेत कविता संकलनों के संपादक भी हैं जिनकी चर्चा लगातार पश्चिमी देशों में हुई है।
हिंदी
अनुवाद – दुष्यंत नाचती है एक स्त्री रात में
छुपी हुई नाचती है एक स्त्री अपनी बांहे फैलाती है बोलते पंखों सी वायुकेंद्र से वायु चक्र तक परछाइयों की दीवारों के बीच फैला हुआ प्रकाश का सूनापन वो एक सितारे सी घूमती हुई बनाती है रेखाएं संभावनाओं के पथ पर पीछे हट जाती है नाचती है परिवर्तित होती है जैसे उठाएं किसी पक्षी को और धरती के आलिंगन से एक चुंबकीय आकर्षण सा जलते हुए लाल कोयले की तरह गुफाओं की प्रतिध्वनि सी नाचती है और हिलती है बालसुलभ भय से वो अब भी भयभीत अपने भीतर से आवाज देती है नाचती है एक स्त्री काष्ठ के हृदय पर जलाने को जिंदगी की अंधी धड़कन मेरे निष्ठुर घावों पर नाचते हुए पश्चाताप के पथ पर नाचती है एक स्त्री अकेली दुर्भाग्य के विरूद्ध घूमते हुए ग्रह पर स्मृतियों की दुर्घटना पर नाचती है और खुद पर पलटती है हमारे सामने अपनी व्याकुलता को प्रकट करने को जो थी धरती के स्वर्ग से निर्वासित एकांत के यूटोपिया में मैं शब्दों की ओर देखता हूं जो भीड़ को गति देगा जो अपने पाश्र्व में नीहित समस्त शब्दों को एकत्र करेगा जो खो गया है उसकी तपन से समृद्ध एक शब्द अकथनीय की कुंजी से युक्त होगा कथित की अतीन्द्रिय दृष्टि एक शब्द जो बांध लेगी करीब हृदय के उस द्वीप में जिससे समुद्र उस पर टूट पड़े। उसकी मृदु निद्राहीनता एक अद्भुत शब्द केवल जिसकी ध्वनि शत्रु को नष्ट कर देगी एक आईने की तरह जहां प्रत्येक स्वयं को दूसरे में देखेगा और कालनिरपेक्षता में एक शब्द बारिश और उसके खतरों से प्रार्थना करने हवा की तरह समस्त देशों से मिलेगा और जैसे ही रोटी की ओर मुड़ेंगे मनुष्य एक दूसरे से जुड़ जाएंगे। ***
बच्चे सरीखे मेरे बूढे पिता
एक
मैंने
देखा आपको बहुत भयभीत बिल्कुल बच्चे की तरह! मेरे पिता जब आपकी आंखों में मौत ने मौन सूचना दी अपने आगमन की, मैं तड़प रहा था आपको शुक्रिया कहने को गले लगाने और अलविदा कहने को आपको याद दिलाने को कि ईश्वर ने सदा आपको माफ किया ईश्वर हमेशा उन्हें माफ करता है जो जिंदगी के लिए जिंदगी की बाजी लगाते हैं जो अपने हृदय के साहस से अपने वजूद के रास्ते खोजते हैं और इसके तमाम जोखिमों को लांघते हैं मैं तड़प
रहा था आपसे कहने को कि मैंने आपके श्रेष्ठों में श्रेष्ठ गुणों को भद्रता में आपकी विशिष्ट भद्रता और मरूस्थल की सौम्य रेत पर स्थित आपके अटल गर्व को। दो मेरे पिता
मैं तड़प रहा था आपको ले जाने को आपके पिता की कब्र पर इस उम्मीद के साथ कि आप इस जीवन में क्षमा कर देंगे निस्संगता उनके जीवन की जो छोड़ गया आपको जो अब रहते हैं अकेले पोर्ट फादर में मैं चाहता था कि आप छोड़ जाएं बिना अपने उपर कोई भार महसूस किए जिससे दूर तट पर आपकी परेशानियां होगी न्यूनतम और आप भूल सकेंगे अपने घाव इसके कारण। तीन
अब आप
शांति से रह सकते हैं मेरे बूढे पिता बच्चे से आपके पोते दोहिते पहले ही आपके बारे में बात करते हैं जैसे आप गए नहीं हो कहीं अब भी तुम मौजूद हो हमारे समय में डरिए मत!
जैसे ही आप प्रकाश का रास्ता पार करेंगे समय फिर से आपको ले जाएगा बचपन में फिर आप बिछड़े सूरज से खेलोगे मैं आपको गले लगाउंगा पिताजी! जे मैं नहीं कर सका मेरे पिता को उनकी मौत पर जो अब पोर्ट फादर में अकेले रहते हैं ***
शताब्दी का अंत
पहला जाम
मैं बहुत
तन्हा हूं और पुलिस के लिए भी अवांछित यह काल्डस
रम मेरी उदासी में बेअसर है मेरा कोई प्रियजन मेरे पास नहीं है कोई जीवमात्र भी मुझे याद दिलाने को इस ग्रह का भाग्य! मेरे बेटे अपने कामों पर गए हैं मैं बस अपने ही साथ अकेला कि समझ तो सकता हूं आत्महत्याओं को पर खुद को गोली मारने की हिम्मत नहीं करता। दूसरा जाम
वो सही थे
जब उसने इनसान बनाया ईश्वर के पास दो जाम कम पड़ रहे थे अब एकांत है ख्वाबों का कटोरा स्त्री
जिसे मैं जानता हूं लौटती है धूल के फूल उगाने को दो जाम… और दुनिया का चेहरा बदल जाता है.. छोटे मसले गौण हो जाते हैं और उनमें से एक करता है मौत से ही दिल्लगी ! तीसरा जाम आत्मसंतुष्टि
के मार्ग को अपनाते हुए मैं खुद को समझाता हूं पर ये दिल अब चाहता है अपने पिंजरे से मुक्ति अपने संत होने से नहीं बंधा रहेगा जो आकांक्षाओं को अस्वीकार करेगा यह मुक्ति चाहता है और गलियों तक ले जाते हुए खुद को खपाना उतावले कामों में तमाम खतरों का जोखिम उठाता है यह जानते हुए कि सच्चे यौद्धा की तो पहले ही मौत हो चुकी है। चौथा जाम
यह संख्या
मुझे क्यों बार-बार परेशान करती है क्या इसलिए कि मैं चार भाइयों में तीसरे नंबर का हूं या यह मेरे हाई स्कूल के प्रायः हासिल होने वाले प्राप्तांक हैं या मैं नहीं जानता पांचवां जाम
ली पो का
चांद फिर चमका सहज होने की प्यास में कोई और धारण करता है मेरी देह धुल जाते हैं सारे पाप और सारी घृणाएं मेरी छाती के पास पतवार रखते हुए नाव लड़खड़ाती है बिल्कुल एक शराबी की तरह। |
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