वोडु
वोडु जमीन मां पढ़न
सि पैली
पड़दू दिलूँ मां
अर वै हि वोडो छाप पड़दू
जमीन पर
अर जब ज़मीन अर दिल
द्वी जगा पड़ी जांदु वोडु
तब वै ते हटोण व्हे जांद
मुश्किल
तब वोडु हट नि सकदु
बस सरकाये सकदु
अर सरकौण पर व्हनदीन
राड़
(हिंदी अनुवाद)
सरहद का पत्थर
ज़मीन पर स्थापित होने से पहले
स्थापित होता है दिलों में
और बाद में पड़ती है उस की ही छाप
ज़मीन पर भी
और जब ज़मीन और दिल
दोनों जगह स्थापित हो जाताहै सरहद का पत्थर
तो उसे हटाना हो जाता है
मुश्किल
तब वो पत्थर हटाया नहीं जा सकता
वो बस खिसकाया जा सकता है
और खिसकाने पर
होती हैं लड़ाइयाँ
***

बिसौंण*
बिसौंण होंदिन उँ ते
जु ल्ये तै औन भारा घासा ..लाखड़ा
जु ल्ये तै औन कूड़े पठाल….बाँसा
जु ल्ये तै औन मंडवार्त का बाद साटि का कट्टा
लौंणा बाद ग्यूं ,जौ का भारा
जु अपणी पीठि मां
उठोन्दन सैरी पिर्थवि कु भार
उँका भार उठौणा ते होंदिन
बिसौंण
(हिंदी अनुवाद)
बिसौंण
बिसौंण होती है उनके लिए
जो ले के आयें बोझ घास के, लकडी के
जो ले के आएं मकान की छत के लिए
स्लेटी पत्थर… बल्लियाँ
जो ले के आएं मंडाई के बाद
धान के कट्टे
कटाई के बाद गेहूँ और जौ के बोझ
जो अपनी पीठ में
उठाते हैं
सारी पृथ्वी का भार
उनके लिए होती हैं
बिसौंण
(*बिसौंण- पहाड़ी रास्तों पर बनाया गया वह स्थान जहाँ पर बोझे को कुछ समय के लिए रखकर आराम किया जाता है।)
***

कुलैं
नेता कुलैं छन
उ जब बढदिन त अपणी जमीन भूल जांदन
हेरदिन बस सर्ग
उँ ते जमीन पर ल्योणों बस एकी
बाटू च
क्वि चढ़ी ते काटी द्यो
उँ का टुख
अर गेंडी द्यो सब फांगा
ताकि उँका भ्वां भि
फल फूली सकून क्वि डाला
(हिंदी अनुवाद)
चीड़
नेता चीड़ हैं
जो जब बढ़ते हैं
तो भूल जाते हैं
अपनी ज़मीन
देखते हैं बस आकाश
उनको ज़मीन पर लाने का
है बस एक ही रास्ता
कि कोई चढ़ कर
काट दे उनके शिखर
और हटा दे उनकी सारी
टहनियाँ
ताकि उनके नीचे भी
फल फूल सकें
कोई वृक्ष।
***

बिकासो घट
बिकासो घट
रिंगोंदीन नेता अर
ऑफ़िसूं मां थरप्यां अधिकारी
अर कभी कभी त
यु रिंगे देंदिन
बिकासो घट
बिना पाणिन
जब रिंगदु बिकासो घट
त वै सि अलावा नि सुणेदी
और क्येगी आवाज़
यु घट रिंगदु त बीजां च
पर पीसदु कुछ नी।
(हिंदी अनुवाद)
विकास का घराट
विकास का घराट
घुमाते हैं नेता
और ऑफिसों में
बैठे अधिकारी
और कभी कभी तो
वे घुमा देते हैं इसे
बिना पानी के
जब घूमता है
विकास का घराट
तो उसके सिवा नहीं सुनाई देती
कोई और आवाज़
ये घराट घूमता तो बहुत है
मग़र पीसता
कुछ भी नहीं
***

दाथड़ा
उँन कलम त नि देखी
पर उँन दाथड़ा देखिन
जैन काटिन उँन
अपणा दुख
पहाढ़ो दुख
अपणी गरीबी
अपणु बिजोग
जब लुकारा छोरुं
टांकीन कांधि मां
बस्ता
तब उन सारिन
घासा भारा
मौला कंडा
जब लुकारा छोरा
रैन बैठ्यां
स्कूलों मां ,क्लासूं मां
उ रेन तब बिसौंणयूं मां ,
पल्योंणयूं मां
जब लुकुन गीणीन
अपणा छोरुं का नम्बर
त उँका ब्वे बाबुन
गीणीन
ब्यखन दां घौर आयां
गोरुं
अर एक बी गोरुं कम होण
पर
खै उँन मार
इथगा मार
कि जथया नम्बर कम औंण
पर भि नी पड़दि
सेरी दुन्या ते बस्तूं
बोझ त दिख्ये
पर नि दिखे त
उँका भारुं बोझ
जॉन पकड़ी छे कलम
उ चलिगेंन जब
छोड़ी अपणी थात
त तब संभाली
उँन
जौं ते क़लम का बदला
मिली छा दाथड़ा
मैन करिन सेरी गणना
अर जाणी
कि कलम वालूँ योगदान
दाथड़ा वालूँ सि जादा
नि च।
(हिंदी अनुवाद)
उन्होंने कलम तो नहीं देखीं
पर उन्होंने दराँतियां देखीं
जिससे काटे उन्होंने अपने दुख
पहाड़ों के दुख
अपनी गरीबी
अपना दुर्भाग्य
जब दूसरों के बच्चों ने
टांके कंधों पर स्कूल के बस्ते
तब उन्होंने ढोये
घास के बोझ
गोबर की टोकरियाँ
जब दुसरों के बच्चे रहे बैठे
स्कूलों में, अपनी क्लासों में
तब वे रहे बैठे बिसौंण में
और दराँतियां पैनी करने वाली
जगहों पर
जब दूसरों ने गिने अपने बच्चों के नम्बर
तब उनके माँ बाप ने गिने
शाम को चर के घर आये हुए जानवर
और एक भी जानवर कम होने पर
पड़ी उन्हें इतनी मार
कि जितनी नम्बर कम आने पर भी
न पड़ती हो।
सारी दुनिया को दिखा
बस्तों का भार
पर उनके बोझों का नहीं कर सका
कोई आकलन
जिन्होंने पकड़ी थीं कलमें
वे चले गए जब
छोड़ कर गए अपनी भूमि
तो तब सम्भाला उन्होंने
जिन्हें क़लम के बदले
मिली थीं दराँतियां
मैंने की सभी गणनाएँ
और जाना
कि कलम वालों का योगदान
नहीं है दराँती वालों से अधिक
***
(कविताओं का हिन्दी अनुवाद स्वयं कवि द्वारा किया गया है। )