अनुनाद

पारुल की तीन कविताएँ

पारुल एक समर्थ और लोकप्रिय ब्लोगर हैं। वे झारखंड में रहती हैं…… …पारूल…चाँद पुखराज का…… किसी परिचय का मुहताज नहीं। मैंने यहाँ बहुत अच्छा संगीत पाया और कविताएँ भी। उनकी तीन कविताएँ यहाँ प्रस्तुत हैं। इनमें हमारे आसपास दिखती वस्तुओं, रंगों, गंधों और विरल मानवीय संवेदनाओं की एक अचूक समझ और संतुलन मौजूद हैं, जो उनकी कविताओं को एक अलग पहचान देते हैं। अनुनाद पर पारुल का यह प्रथम आगमन है…उन्हें हमारी शुभकामनाएँ।

इरेज़र

सुंदर थे बचपन के पेंसिलबाक्स और वे रंग बिरंगे
फूल,तितली,तारों,सितारों वाले
इरेज़र्स
उनके मिटाने से मिट जाती थी सभी ग़लतियाँ
पन्ना हो जाता था दोबारा
उजला-सफ़ा
उनसे उठती थी मीठी-मीठी गन्ध
जैसे सच ही तोड़ कर लाये गये हों
फलों के बाग़ीचों से…

मैने कभी उन्हे इस्तेमाल नहीं किया
गणित के उमसाए क्लास में चुपचाप
डिब्बा खोलकर सूँघती और फिर
निकाल एक सादी रबड़
हल करती सारे गलत सवाल…

सवाल
मुझसे न तब हल हुए न अब
आज भी उलझ कर टटोलती हूँ गाहे-बगाहे
कि शायद बचा हो अब भी कोई एक आध टुकड़ा
………इरेज़र……
***

रात-बात

किस कदर पराये – उदास हो जाते हैं वो दरीचे ,वो ज़मीन
जिनसे पहरों पहर रही हो आशनाई कभी…

सहर से ज़रा पहले रात के आख़िरी पायदान पर
बजे वारिस शाह की हीर कहीं
या लहरे वायलन पर राग ” सोहनी”
दोनो ही सूरतों का हासिल एक- सुरूर एक…

बिस्तर पर बेसबब देह क़तरा-क़तरा करवट-करवट
अलापे, दुगुन-तिगुन मे आड़ी-तिरछी तान
जिसके लयबद्ध होने की कतई कहीं गुंजाईश नहीं….

“जी”,पतझड़ के चौड़े पत्तों में खड़खड़ाता फिरे
और बिना नैन नक़्श वाली रूह लगातार
खींचे तलवों से कोई बार-बार….

सुना है मरने से ज़रा पहले लोगों को खरोचते हैं बंदर
या डराते हैं शैतान ……

हाथ टटोल ऊबी आँखों से रात की सूखी कोरें पोंछ,
मन की रासों को लगाम–ज़रा लगाम
***

बारिशें आती हैं

दर-ओ-दीवार से उठता हुआ ये उजला धुंआ
बुर्ज़ का ऊपरी पत्थर भी ना छू पायेगा
इक ज़रा देर को लहरायेगा-खो जायेगा–
रोटियॉ गीली रहीं रात जो चूल्हे पे पकीं
सीला-सीला था जलावन धुंध करता रहा
घर की बरसाती में क्यों लकड़ियां रख जाते हो?
बारिशें आती हैं–
नुकसान बड़ा होता है

***

0 thoughts on “पारुल की तीन कविताएँ”

  1. पारुल जी की कविताओं में गहराई है, अपनापन का अहसास है…दिल को छूती है रचनायें. आभार.

  2. पारुल जी की कई कवितायें उनके ब्लाग पर पढ़ चुका हूँ। उनमे संवेदनशीलता का एक गहरा तल है –
    शब्द और शिल्प की महीन कताई – बुनाई से परे ; एक सच्ची राह। 'इरेज़र' तो अद्भुत है!
    अच्छा लगा 'अनुनाद' पर उनकी उपस्थिति से रू- ब- रू होना !

  3. पारुल को बधाई अनुनाद पर आने की. बाकी
    उनकी कविताओं से परिचय पुराना है…हमेशा
    की तरह भीतर तक टोहती हैं उनकी कवितायें…

  4. यह प्रस्तुति ही अनुनाद को अनुनाद बनाए हुए है.पारुल को ठीक से पढ़ना होगा.

  5. कुछ ताजा हुआ इन कविताओं को पढकर. सीधी सरल भाषा में बुनी हुई कवितायेँ मोहती हैं. पारूल जी को शुभकामनायें और आपको धन्यवाद इन्हें हम तक पँहुचाने के लिए.

  6. पारुल की कविताएँ खासकर इरेजर प्रभावित करती हैं। उनकी भावनाएँ उर्दू नज़्म की तरह संगीतात्मकता भाषा में पिरोई गई लगती हैं।

  7. इन्हें यहाँ प्रस्तुत करने का आभार.मुझे याद है कि इरेजर कविता जब पारुल जी ने अपने ब्लॉग पर लगाई थी तो मैंने भी उस पर अपनी प्रतिक्रिया दी थी.अब इसे फिर से यहाँ देख कर बहुत अच्छा लगा.पारुल जी को बधाई.

  8. सुन्दर कवितायें…नये-नये लोगों की स्नेहिल प्रस्तुति ही ऐसे ब्लाग को महत्वपूर्ण बनाती है…न कि स्टारों को प्रस्तुत कर महान होने का भ्रम…और संजय व्यास,प्रभात सहित तमाम संभावनाशील लोगों के बाद अब पारुल जी को पेश कर अनुनाद यह भूमिका बख़ूबी निभा रहा है…बधाई और शुभकामनायें

  9. बहुत सुंदर और ताजगी से भरी कविताएँ पारुल को बधाई….प्रस्तुति के लिए आभार..

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