धूमिल की याद – उनकी अन्तिम कविता Leave a Comment / By Anunad / November 9, 2009 शब्द किस तरहकविता बनते हैंइसे देखोअक्षरों के बीच गिरे हुएआदमी को पढ़ोक्या तुमने सुना कि यहलोहे की आवाज़ है यामिट्टी में गिरे हुए ख़ूनका रंग। लोहे का स्वादलोहार से मत पूछोघोड़े से पूछोजिसके मुंह में लगाम है। ***
प्रज्ञा पांडेय November 9, 2009 at 5:54 pm क्या ज़बरदस्त कविता है .. यथार्थ बस यथार्थ ! और उसमें भी कविता … लोहे का स्वाद तो घोड़ा ही बताएगा .. तभी तो वे धूमिल हैं !!! Reply
सागर November 10, 2009 at 11:25 am धूमिल हमेशा मुझे टुकडों-टुकडों में मिले… हमेशा… मैं जब भी उन्हें पाना चाहा मुकम्मल छिटक गए… Reply
श्रद्धा जैन November 10, 2009 at 1:30 pm bahut achhi kavita padhwayi hai aapne lohe ka swaad ghode se poochobahut khoob Reply
डॉ .अनुराग November 10, 2009 at 2:18 pm यूं कहे उनकी कई कविता अपना अर्थ उम्र के हर मोड़ पे अलग अलग देती रही Reply
शरद कोकास November 17, 2009 at 6:04 am धूमिल का यह शिल्प बार बार प्रहार करता है .. इस तरह की कोंचने वाली कविताओं की सख्त ज़रूरत है । Reply
bahut badiya waah ghodhe se poocho
क्या ज़बरदस्त कविता है .. यथार्थ बस यथार्थ ! और उसमें भी कविता … लोहे का स्वाद तो घोड़ा ही बताएगा .. तभी तो वे धूमिल हैं !!!
धूमिल हमेशा मुझे टुकडों-टुकडों में मिले… हमेशा… मैं जब भी उन्हें पाना चाहा मुकम्मल छिटक गए…
bahut achhi kavita padhwayi hai aapne
lohe ka swaad ghode se poocho
bahut khoob
यूं कहे उनकी कई कविता अपना अर्थ उम्र के हर मोड़ पे अलग अलग देती रही
kash ye antim n hoti……..
धूमिल का यह शिल्प बार बार प्रहार करता है .. इस तरह की कोंचने वाली कविताओं की सख्त ज़रूरत है ।
अद्भुत!!