अनुनाद

धूमिल की याद – उनकी अन्तिम कविता

शब्द किस तरह
कविता बनते हैं
इसे देखो
अक्षरों के बीच गिरे हुए
आदमी को पढ़ो
क्या तुमने सुना कि यह
लोहे की आवाज़ है या
मिट्टी में गिरे हुए ख़ून
का रंग।

लोहे का स्वाद
लोहार से मत पूछो
घोड़े से पूछो
जिसके मुंह में लगाम है।

***

0 thoughts on “धूमिल की याद – उनकी अन्तिम कविता”

  1. क्या ज़बरदस्त कविता है .. यथार्थ बस यथार्थ ! और उसमें भी कविता … लोहे का स्वाद तो घोड़ा ही बताएगा .. तभी तो वे धूमिल हैं !!!

  2. धूमिल हमेशा मुझे टुकडों-टुकडों में मिले… हमेशा… मैं जब भी उन्हें पाना चाहा मुकम्मल छिटक गए…

  3. धूमिल का यह शिल्प बार बार प्रहार करता है .. इस तरह की कोंचने वाली कविताओं की सख्त ज़रूरत है ।

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