विश्वकविता में अपना एक विशिष्ट स्थान रखने वाले स्वीडिश कवि टॉमस ट्रांसट्रॉमर का जन्म 15 अप्रैल 1931 को हुआ। उनका बचपन अपनी के मां के साथ एक श्रमिक बस्ती में बीता। एक विद्यार्थी के रूप में उन्होंने मनोविज्ञानी की उपाधि प्राप्त की और संगीत से भी उन्हें बेहद लगाव रहा। इन सब बातों का प्रभाव उनकी कविता पर पड़ा, जहाँ मौजूद भीतरी और बाहरी संसार पाठकों को बरबस ही अपनी ओर खींचता है। जल्द ही अशोक पांडे की इस्लाह के बाद मैं ट्रांसट्रॉमर की संगीत केंद्रित लम्बी कविता शुबेर्तियाना आपको पढ़वाऊंगा , फिलहाल यहां प्रस्तुत हैं उनकी एक कविता ….
हताशा और वेदना स्थगित कर देती हैं
अपने-अपने काम
गिद्ध स्थगित कर देते हैं
अपनी उड़ान
अपने-अपने काम
गिद्ध स्थगित कर देते हैं
अपनी उड़ान
अधीर और उत्सुक रोशनी बह आती है बाहर
यहाँ तक कि प्रेत भी अपना काम छोड़
लेते हैं एक-एक जाम
हमारी बनाई तस्वीरें –
हिमयुगीन कार्यशालाओं के हमारे वे लाल बनैले पशु
देखते हैं
दिन के उजास को
यों हर चीज़ अपने आसपास देखना शुरू कर देती है
धूप में हम चलते हैं सैकड़ों बार
यहाँ हर आदमी एक अधखुला दरवाज़ा है
उसे
हरेक आदमी के लिए बने
हरेक कमरे तक ले जाता हुआ
हमारे नीचे है एक अन्तहीन मैदान
और पानी चमकता हुआ
पेड़ों के बीच से –
वह झील मानो एक खिड़की है
पृथ्वी के भीतर
देखने के वास्ते।
यह अनुवाद भी अच्छा है। सुझाव है कि धीरे-धीरे आप पुस्तकाकार अनुवाद करें। एक कवि अनुवाद करते समय उस संगीत का ध्यान रख सकता है जो कविता के भीतर कहीं लगातार बजता है। शुभकामनाएं।
सचमुच यह अच्छा अनुवाद है। लंबी कविता का इंतजार रहेगा।
भाई गजब कविता है। अनुवाद भी कमाल है।
achhi kavita. Kumar Ambuj sahi apeksha kar rahe hain aapse
अच्छी कविता – अच्छा अनुवाद