येहूदा आमिखाई
आंखों की उदासी और एक सफ़र की तफसील एक अँधेरी याद है जिस पर चीनी के बुरे की तरह बिखरा हुआ है खेलते हुए बच्चों
आंखों की उदासी और एक सफ़र की तफसील एक अँधेरी याद है जिस पर चीनी के बुरे की तरह बिखरा हुआ है खेलते हुए बच्चों
ये स्मृति है एक अंकुर की जिसे बड़ा पेड बनना था लेकिन अब उसके अंकुराने के कुछ प्रमाण ही शेष हैं। उसके नाम से मुझे,
खुशीवह नहीं चाहतीकि मैं उसके बारे में कुछ बोलूंउसे कागज पर नहीं उतारा जा सकेगाऔर न हीउसके बारे में कोई भविष्यवाणी ही की जा सकती
अब बच्चा अब बच्चाकुछ देख रहा हैकुछ सुन रहा है कुछ सोच रहा है क्या वह देख रहा हैउस तरह की चीज़ों को जैसी देखी
ईश्वर से मुखामुखी मेरी चमकती आंखों से दूसरी पर भाग जाने कि आतुरता छीन कर उन्हें सिखालाओ पर्दा करना उन चमकीली आंखों से हे ईश्वरहे
स्मृतियां मुझ पर निगाह रखती हैंजून की एक सुबह यह बहुत जल्दी है जागने के लिए और दुबारा सो जाने के बहुत देर हो चुकी
प्रेम की स्मृतियाँ १ – छवि हम कल्पना नहीं कर सकते कि कैसे हम जियेंगे एक दूसरे के बिना ऐसा हमने कहा और तब से
समुद्र तट पर निशाँ जो रेत पर मिलते थे मिट गएउन्हें बनाने वाले भी मिट गए अपने न होने की हवा में कम ज़्यादा बन
इस बार वाया मंगलेश डबराल स्त्रेस्नाय चौराहा स्त्रेस्नाय चौराहे का गिरिजाघर बजाता है चार का गजरहालांकि चौराहा और गिरिजाघर बहुत पहले उजड़ गए हैं और
ये कवितायेँ भीं वाया वीरेन डंगवाल ……. रूबाईयात १जो दुनिया तुमने देखी रूमी, वो असल न थी, न कोई छाया वगैरहयह सीमाहीन है और अनंत,