अनुनाद

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फेदेरिको गार्सिया लोर्का की कविताएं : अनुवाद : विष्णु खरे / 3

फेदेरिको गार्सिया लोर्का की कविताओं / गीतों के अनुवाद की ये तीसरी किस्त ………

नारंगी के सूखे पेड़ का गीत

लकड़हारे
मेरी छाया काट
मुझे खुद को फलहीन देखने की यंत्रणा से
मुक्त कर !

मैं दर्पणों से घिरा हुआ क्यों पैदा हुआ?
दिन मेरी परिक्रमा करता है
और रात अपने हर सितारे में
मेरा अक्स फिर बनाती है

मैं खुद को देखे बगैर ज़िन्दा रहना चाहता हूं

और सपना देखूंगा
कि चींटियां और गिद्ध मेरी पत्तियां और चिड़ियां हैं

लकड़हारे!
मेरी छाया काट
मुझे खुद को फलहीन देखने की यंत्रणा से
मुक्त कर !

रोने का क़सीदा

मैंने अपने छज्जे की खिड़की बंद कर दी है
क्योंकि मैं रोना सुनना नहीं चाहता
लेकिन मटमैली दीवारों के पीछे से रोने के सिवा कुछ सुनाई नहीं देता

बहुत कम फरिश्ते हैं जो गाते हैं
बहुत ही कम कुत्ते हैं जो भौंकते हैं

मेरे हाथ की हथेली में एक हज़ार वायलिन समा जाते हैं

लेकिन रोना एक विशालकाय कुत्ता है
रोना एक विराट फरिश्ता है
रोना एक विशाल वायलिन है

आंसू हवा हो घोंट देते हैं
और रोने के सिवा कुछ सुनाई नहीं देता!

गुलाब का क़सीदा

गुलाब ने सुबह नहीं चाही अपनी डाली पर चिरन्तन
उसने दूसरी चीज़ चाही

गुलाब ने ज्ञान या छाया नहीं चाहे
सांप और स्वप्न की उस सीमा से
दूसरी चीज़ चाही

गुलाब ने गुलाब नहीं चाहा
आकाश में अचल
उसने दूसरी चीज़ चाही !

हर गीत

हर गीत
चुप्पी है
प्रेम की

हर तारा
चुप्पी है
समय की

समय की
एक गठान

हर आह
चुप्पी है
चीख की!

(अगली किस्त में शानी के सात अनुवाद)

0 thoughts on “फेदेरिको गार्सिया लोर्का की कविताएं : अनुवाद : विष्णु खरे / 3”

  1. सीधे लोर्का से मिलाने के लिए कोटि-कोटि धन्यवाद…बहुत दूर तक खींच ले गई इसकी कवितायें…आपकी प्रस्तुति भी अदभूत है…

  2. बढ़िया अनुवाद, उम्दा संकलन. विष्णु जी के काम के बारे में कोई भी क्या कह सकता है. वे महान हैं.

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