अनुनाद

विनोद दास की कविताओं का सिलसिला/ पहली कविता

विनोददास हमारे अग्रज कवि और चिंतक हैं। ख़ुशी की बात है कि मेरे अनुरोध पर उन्होंने अपनी कुछ कविताएं अनुनाद के लिए भेजी हैं। मेरे विचार से किसी साहित्यिक ब्लाग पर विनोद जी का यह प्रथम आगमन है और हम उन्हें ख़ुशआमदीद कहते हैं। हम उनकी कविताओं को एक-एक कर सिलसिले के रूप में लगायेंगे। पूरा विश्वास है की अनुनाद के पाठकों को विनोद दास की कविताओं का ये सिलसिला पसन्द आएगा।
आज की कविता है “साध्वी”, जिसे पढ़कर मुझे लू-शुन की एक महान कहानी आ क्यू की सच्ची कहानी” की दुबली-पतली, नाटी और ग़रीब भिक्षुणी याद आती है…..

साध्वी

हल्के रंग के परिधान में
अपने कई हमसफ़रों के साथ
सूखी रोटी-सी मरियल
पुस्तक मेले के एक साफ़-सुथरे छोटे स्टाल पर
वह खड़ी है
शताब्दियों से

उसके चेहरे पर है
न कोई कामना
न कौतूहल
न कोई रोमांच
जैसे सूख गया हो कोई कुंआ
और छा गई हो उसके मुहाने पर
उदासी की घास

सब कहते हैं
उसे साध्वी

कहती हैं उसकी आंखें
चीख-चीखकर
साध्वी नहीं, मैं एक स्त्री हूं
मेरे भी उन्नत वक्षों में होती है सुरसुराहट
रजस्वला होती हूं हर माह

मेरे भी गर्भ में
मचा सकते हैं ऊधम
नन्हें-नन्हें दो पांव
कोई नहीं सुनता
उनकी चीख
दुनिया इन तमाम चीखों से भरी पड़ी है
बेहिसाब ऐसी ग़लतियों से भरी
करता नहीं जिसे कोई ठीक

पिता, भाई, चाचा, दोस्त
खो गए हैं उसके भीतर
वह लड़का भी
शाम के झुटपुटे में
जिसने चूमा था
गर्दन के पीछे
उसके खुले हिस्से को

लेकिन वह
भूले से भी नहीं खोजती उन्हें
न जाने कब
कोई पुकार ले उसे
पुराने नाम से

पुराना नाम सुनकर वह हौले से दबाती है
अपनी नई देह की सिहरन

धर्मग्रंथ बेचते हुए
जब कोई पुरुष भंगिमा करती है उसे बेचैन
क्रोध से कांपने लगता है
उसके गले से लटका धर्मचिन्ह
और वह छटपटाने लगती है
दो पल्लों बीच फंसी तितली की तरह

वह साध्वी नहीं
है चलती-फिरती एक देह
खोजती हुई अपनी आत्मा
इस मायावी दुनिया में


0 thoughts on “विनोद दास की कविताओं का सिलसिला/ पहली कविता”

  1. खिलाफ़ हवा के गुजरते हुए से विनोद जी को पढना शुरू किया था। भारतीय सिनेमा का अन्तःकरण सिनेमा पर उनकी एक महत्वपूर्ण पुस्तक है। अपने प्रिय और महत्वपूर्ण कवि को यहां देखना ही अच्छा लगा। शिरीष बहुत बहुत आभार तुम्हारा। पहला चयन ही इतना उम्दा है तो आगे तो इंतजार रहेगा ही।

  2. ajay agarwal

    it is good to allow anyone to comment on your blog as you have comment moderatoe also! therefor there is no need to restrict anyone at the very first step.

    i am a regular follower of anunaad . this time here is a nice poem about sufferings of women monks of our country. my good wishes to poet.

    ….. do you have any rememberance of those b.sc. days?

  3. खिलाफ़ हवा के गुजरते हुए पढ़ा था. उसकी कुछ कवितायेँ जहन में गूंजती रहती हैं. यह कविता भी अच्छी लगी.

  4. बहुत ही गहन और कटु यथार्थ अनुभूति संवेदना से ओतप्रोत रचना है..समकालीनों में मेरे सबसे प्रिय कवि हैं विनोद दास..

  5. विनोद जी मेरे मित्र और प्रिय कवि है।सोचा था उनसे पूछू कि वे कविताये क्यो नही लिख रहे है ।लेकिन आपके ब्लागपर उनकी वेहतरीन कविता पढकर मन प्रसन्न हो गया।ुम्मीद की जानी चाहिय्रे कि अब उनकी कविताये पढने को मिलेगी ।

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