अनुनाद

रोना – हरि मृदुल की एक कविता

हेमंत स्मृति सम्मान तथा महाराष्ट्र साहित्य अकादमी के संत नामदेव पुरस्कार से सम्मानित युवा कवि हरि मृदुल की यह कविता संवाद प्रकाशन वाले भाई श्री आलोक श्रीवास्तव ने उपलब्ध कराई है। उनके प्रति आभार। इस श्रृंखला की पिछली दो कविताएँ यहाँ और यहाँ पढ़ी जा सकती हैं।


आखिर ऐसी बात कौन सी
भर आए आंखों में डबडब आंसू

पोंछते ही इनके फिर भर आने में संदेह
इसलिए पोंछने की होती नहीं इच्छा

सूख रहे आंखों में ही अब
बस कोरों पर ही थोड़े बचे हुए हैं

शीशे के सम्मुख खड़े हो लिए
ऐसे दृश्य देखने के भी हम उत्सुक।
***
(यह कविता `सफेदी में छुपा काला´ संग्रह में मौजूद है, जिसे, 2007 में उद्भावना ने प्रकाशित किया।)

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