– संजय व्यास
दुःस्वप्न उसकी उम्मीद से ज्यादा वास्तविक थे
वे तमाम हॉलीवुड मूवी चैनलों और
हॉरर धारावाहिकों की तरह रोज़ दीखते
और कुछ फीट के फासले पर
घटित होते थे
जिन्हें देखने के लिए रात और नींद का
इंतज़ार नहीं करना पड़ता था
पर हाँ रात और नींद में
कुछ अधिक तीव्रता से
मायावी प्रभाव के साथ
उपस्थित होते थे
स्कूटर पर लदे दिन में जबकि
देर तक मंद और घातक असर से युक्त।
दोनों प्रकारों के बीच सिर्फ़
सुबह की चाय ही रहती थी
या यूँ कहें कि
उसकी सुबह सिर्फ़ उस चाय की प्याली में ही
रहा करती थी
जो प्याली के साथ ही
रीत जाया करती थी
इसके बरक्स
उम्मीद
किसी रेगिस्तानी कसबे में
अरब सागर की
किसी लहर के इंतज़ार की तरह
क्षीण और दूरस्थ थी
या अखबार के परिशिष्ट की
बिना हवाले वाली अपुष्ट ख़बर की तरह अवास्तविक
जो अमेरिका द्वारा
तीसरी दुनिया की भूख के
जादुई डिब्बाबंद समाधान की शोध के
अन्तिम चरण में होने की
बात करती थी
असल में ये एक बीमारी थी
जिसके इलाज़ की ज़रूरत थी
वरना क्या वज़ह थी कि
दुनिया के विज्ञापक नमूने
हर वक्त रौशनी को
परावर्तित करते थे
टीवी के सैकड़ों चैनल
जिनमे न्यूज़ चैनल भी शामिल थे
तत्पर थे उसके मनोरंजन को
शहर के होटल चौबीस घंटे
परोसते थे खाना
और उपभोक्ता सेवा केन्द्र
टेलीफोन की एक घंटी पर
दौड़ पड़ते उसकी ओर।
शोर भी यही है कि
दुनिया बनी हुई है इन दिनों
उम्मीद की राजधानी
फ़िर उसका दम
क्यों घुट रहा है ***
संजय जी की दृष्टि बड़ी विलक्षण है और घटना को लिखने के लिए जिन शब्दों का वो संधान करते हैं वो बड़े चुने हुए होते हैं… यही कारण है कि वो तस्वीर साकार हो जाती है … हम इनके कायल इन्ही वजहों से रहे हैं…
बढ़िया कविता है, वैसे संजय भाई ने कविता पर कितना काम किया है मालूम नहीं है किन्तु साल पिचियासी से नब्बे तक इनकी कहानियां निरंतर प्रकाशित होती रही हैं. हाल में ब्लॉग के जरिये भी बहुत से लोगों का काम सामने आ रहा है. अनुनाद पर कविता को लेकर काफी गंभीर काम हो रहा है. शुभकामनाएं.
अपनी बात को कहने की एक दम अनूठी शैली है संजय के पास।
सबसे अलग और शानदार
शिल्प, विचार और कथ्य सब लाज़बाब.
जोधपुर स्थापना दिवस पर एक प्रयास
http://nukkadh.blogspot.com/2010/05/blog-post_9538.html
एक अच्छी कविता पढ़वाने के लिए शुक्रिया
Sanjay-ji ka gadya achha lagta hai, kavita pahlee baar padhee.Agli kab tak?
Sanjay-ji ka gadya achha lagta hai, kavita pahlee baar padhee.Agli kab tak?
संजय जी को पढ़ना सुखद रहा !!!!! कलम मे नवीनता है ।
कविता अच्छी लगी संभावना जगाती हुई…
संजय व्यास को अनुनाद पर देखना अच्छा लगा.इन का ब्लॉग निरंतर पढता हूँ. इन की और कविताएं लगाईए.
सुन्दर शब्दों को कविता में पिरोया है -श्री संजय व्यास जी ने । बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनायें।
-सुरेश सोनी "सुमन"