मैं हूँ निदा : शोले वोल्पे
मैं हूँ निदा बसीजी* की गोली मेरे दिल में फंसी रहने दो करो मेरे खून में सिजदा और चुप भी हो जाओ, बाबा – -मरी
मैं हूँ निदा बसीजी* की गोली मेरे दिल में फंसी रहने दो करो मेरे खून में सिजदा और चुप भी हो जाओ, बाबा – -मरी
अपनी सरस्वती की अंदरूनी ख़बर और उस पर कड़ी से कड़ी नज़र इस ज्ञान निर्भर युग में हरेक को रखनी चाहिए जिन्होंने मनुष्य जाति के
कवि-साथी गीत की लम्बी कहानियों पर पिछले दिनों चले उतने ही लम्बे आलाप में गिरह की तरह प्रस्तुत है उसकी एक शानदार कविता, जो मुझे
घर के लिए टोटके पानक्वा* दरवाज़े और आवाज़े शाम कीआशिक़ों की छुपन हराम कीयह जंगल नहीं शर्त साहित्य कीऔर नहीं तो आएगा सूरजआएगा सूरजआएगा सूरज
एक करवट और उसकी बेचैनी औंधे गिरे भृंग की तरह थी जो सिर्फ एक जीवनदायी करवट चाहता था.एक अर्ध-घूर्णन. फिर सब कुछ ठीक हो जाएगा.या
गुप्त वस्तुओं की सूचना ज़बान के तरीक़े तमामइतने भी नहीं किशरबत के किस्से अधूरे पड़ जाएँ सुनोगी और हंसते—हंसतेनिकलोगी दरवाजे से बैठोयह तो तय है
शिलोंग में रहने वाले तरुण भारतीय मैथिल फिल्मकार और राजनीतिक कार्यकर्ता हैं। उनकी कविताएँ पहल, हंस, समकालीन भारतीय साहित्य, अक्षर पर्व, साक्षात्कार आदि में छपी
काले द्वीप दारियो के लिए इएला नेग्रा* मेंनेरुदा की कब्र और बगीचे में पड़े लंगर के बीचउस आदमी ने, जिसके हाथ पत्थर तोड़ने वालोंजैसे थे,
(दुनिया में अनाचार और अनाचारियों की उपस्थिति कभी कभी किसी कवि को कितना क्रोधित, हताश और क्षुब्ध करती है, इसका एक भीषण उदाहरण व्योमेश द्वारा
कविता इसलिए कि मेरे तलवे मेरी माँ जैसे हैंजन्नत है माँ के क़दमों तले -मुहम्मद साहब और ताज्जुब कर रही हूँ मैंकि अपने पैरों पर