अनुनाद

इमरजेंसी : एक पारंपरिक रूपक – प्रस्तुति : विकासनारायण राय


राजा
बोला रात है


रानी बोली रात है
मंत्री बोला रात है
संत्री बोला रात है

यह
सुबह-सुबह की बात है



0 thoughts on “इमरजेंसी : एक पारंपरिक रूपक – प्रस्तुति : विकासनारायण राय”

  1. इसी बात को हमारी मां कुछ इस तरह सुनाती हैं-
    एक दिन राजा ने कहा बैंगन बहुत भला है,
    हमने भी झट कह दिया सर पर ताज धरा है
    एक दिन राजा ने कहा बैंगन बहुत बुरा है,
    हमने भी झट कह दिया बेगुन नाम धरा है।

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