अनुनाद

मेरी ओलिवर की कविताएं : चयन एवं अनुवाद – यादवेन्द्र



935 में जन्मी मेरी ओलिवर अमेरिका की लोकप्रिय कवि हैं – न्यूयॉर्क टाइम्स ने उन्हें अमेरिका की सर्वाधिक पढ़ी जाने वाली कवि माना है। मुख्य तौर पर मेरी ओलिवर को प्रकृति का चितेरा माना जाता है – अनेक समीक्षक इसको उनकी शक्ति मानते हैं पर स्त्रीवादी उनकी रचनाओं की आलोचना भी करते हैं। अमेरिका के सम्मानित नेशनल बुक पुरस्कार और पुलित्ज़र पुरस्कार सहित अनेक सम्मान उनकी रचनाओं के लिए प्रदान किये गए हैं। उनके तीस के करीब कविता संकलन और कुछ निबंध संग्रह  प्रकाशित हैं। 

मेरी ओलिवर को कुत्तों से बहुत लगाव है और उन्होंने उनको विषय बना कर  अनेक चर्चित कवितायें लिखी हैं। वे कहती भी हैं :” कुत्ते स्वयं किसी कविता की तरह होते हैं … वे न सिर्फ़ हमारे प्रति समर्पित होते हैं बल्कि भीगी रातों को , चन्द्रमा को और घास में बसी हुई खरगोश की गंध को भी समर्पित होते हैं …. यहाँ तक कि खुद के यहाँ वहाँ उछलते बदन के प्रति भी।”  2013 में पेंगुइन से प्रकाशित डॉग सॉंग्स” कुत्तों के साथ उनके गहरे भावनात्मक रिश्तों को परिभाषित करने वाला बेहद लोकप्रिय संकलन हैं। 

यहाँ उनकी ऐसी ही कुछ कवितायें प्रस्तुत हैं  (यादवेन्द्र) : 



कुत्तों को ख़ुशी से उछलता कूदता देख कर हमारी भी ख़ुशी बढ़ जाती है …. यह कोई  अनदेखा कर देने वाली मामूली बात नहीं है। और सिर्फ़ यही एक बात नहीं है जिसके कारण हम अपने जीवन में शामिल ….  या सड़क पर जीवन बसर कर रहे …. या कि आने वाले दिनों में जन्म लेने वाले कुत्तों को सम्मान दें या प्यार करें – कल्पना करें हमारी दुनिया में यदि संगीत ,नदी  या हरी मुलायम दूब न हों तो कैसा लगेगा? इस दुनिया से सारे कुत्ते नष्ट हो जाएँ तो हमारा जीवन कैसा होगा?  
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कोई कुत्ता आपको नहीं बतायेगा कि दुनिया भर में सूँघ सूँघ कर वह क्या जानता समझता है … पर उसको  ऐसा करते देख कर आपको यह पक्के तौर पर समझ आ जाता है कि आप लगभग नासमझ हैं। 
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स्कूल 

तुम छोटे से जंगली प्राणी हो 
जिसको कभी स्कूल में दाखिल नहीं कराया गया 
मैं कहती हूँ बैठो – और तुम हो कि उछल पड़ते हो 
मैं कहती हूँ यहाँ आओ 
और तुम रेत में कुलाँचे भरते हुए भाग जाते हो 
मरी हुई मछली को उछाल उछाल के खेलने लगते हो 
और अपनी गर्दन में भर लेते हो उसकी सड़ैली गंध …. 
यह गर्मी का मौसम है
एक नन्हें से कुत्ते के पास आखिर ऐसे कितने मौसम होते हैं ?  

दौड़ो पर्सी दौड़ो 
हमारा स्कूल यही है ….. 
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कुत्ते कितने मोहक 

तुम्हें कैसा लग रहा है ,पर्सी ?
रेत पर बैठे हुए मैं चाँद को उगते निहारने आयी हूँ 
आज पूरा पूरा खिला है चाँद 
इसी लिए हमदोनों आज इसे देखने निकले हैं।

और चाँद निकलता है इतना खूबसूरत 
कि मैं ख़ुशी से बेकाबू होकर थरथराने लगती हूँ
टाइम और स्थान के बारे में विचारने लगती हूँ 
इनके सन्दर्भ में अपने आपको परखती हूँ  
स्वर्ग के विस्तार में रत्ती भर भी नहीं …. 

हम बैठ जाते हैं ,फिर सोचती हूँ 
कितनी खुशनसीब हूँ कि निहारने को मिली 
चाँद की मुकम्मल खूबसूरती 
और ऐसी दुनिया जिसे प्यार करने को मिले
वह भला क्यों न हो जाए मालामाल …. 

इधर पर्सी है कि झुकता जाता है मेरे ऊपर 
नज़रें लगातार टिकाये हुए मेरे चेहरे पर
उसको लगता है मैं उतनी ही अनूठी अजूबी हूँ   
जैसे है आसमान में खिला हुआ चंद्रमा  …….. 
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रात में नन्हें कुत्ते की बतकही 
                              
वह अपने गाल सटाता है मेरे गाल से 
और निकालता है हल्की पर अर्थपूर्ण आवाज़ 
और जब मैं जागती हूँ 
या जागने को होती हूँ 
वह उल्ट पुलट जाता है 
चारों पंजे हवा में ऊपर 
और आँखें काली जोश से भरी हुई (उत्कट)…… 
बोलो , मुझे करती हो प्यार”, वह बोलता है 
एक बार फिर से बोलो”  
इस से ज्यादा प्यारी बात और कुछ हो सकती है ?
एक नहीं दो नहीं 
बार बार वह पूछता ही रहता है मुझसे 
और मुझे जवाब देना पड़ता है ….    
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हर कुत्ते की एक ही कहानी 

मेरा बिस्तर … बिलकुल निजी मेरा है 
और यह है भी पूरा पूरा मेरी कद काठी के हिसाब का 
कई बार मैं सोना पसंद करता हूँ अकेला  
सपने लिए हुए अपनी आँखों में। 

पर ये सपने कई बार काले हिंसक और डरावने होते हैं 
और बीच रात मैं जग जाता  हूँ .. थर थर कांपने लगता  हूँ 
ऐसा क्यों होता है कारण भी पता नहीं चलता 
और आँखों से नींद एकदम से उड़ जाती है 
घंटों का फिसलना मालूम नहीं पड़ता। 

जब ऐसा होता है मैं बिस्तर पर उछल कर चढ़ जाता हूँ 
देखता हूँ तुम्हारे चेहरे पर चमक रही है चाँदनी 
मुझे समझने में देर नहीं लगती कि 
सुबह अब होने ही वाली है ….

हर किसी को लगता है 
मिल जाए कोई महफूज़ जगह। 

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