अनुनाद

धरती के किसी कोने में – रमेश शर्मा की कविताऍं

कवि का
कथन
मेरी समझ में कविता घर और समाज में एक मनुष्य को दूसरे मनुष्य की संवेदनाओं से जोड़ने वाली एक सेतु की तरह है जिसके बिना एक दूसरे तक पहुँचने में हमें दुनियावी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है | कविता हमारी इन दिक्कतों को आसान करती है, इस अर्थ में हमारे सामाजिक जीवन में कविता की एक बड़ी भूमिका है| दिनोंदिन मृत होती मनुष्य की संवेदना को दुनिया में जिन तत्वों ने थोड़ी मात्रा में ही सही , बचाए रखने में अपनी भूमिका अदा की है , उसमें कविता भी है | मैं अगर कविता न लिख रहा होता , तो मुझे लगता है भीतर से कई बार  अराजक हो उठता | मेरे विवेक को स्पर्श करती हुई कविता, मुझे हर बार भीतर से नियंत्रित करती है |
पढ़ी जाए यह कथा भी

पॉंव ख़ाली हों
तो यात्राएँ कठिन होने लगती हैं
थककर
ठहरे
हुए पानी की तरह

ठहर जाते हैं यात्री
जीवन की यात्रा में
कई बार !
विज्ञान कहता है
ऊर्जा होती है
ठहरे हुए पानी में
ढील दो
तो बहने लगता है तेज !
रुकावटें भी तो भर देती हैं
ऊर्जा से जीवन को कई बार
कई बार फिसलन से बचाती हैं रुकावटें
!
पांव खाली हों
या खाली हो जेबें
रुकावटों के
डरावने उदाहरण की तरह ही
रखे गए दुनिया में अभी तक
ये महज रुकावटें भर नहीं हैं
जीवन के घर्षण बल हैं ये
जिसके बिना सम्भव नहीं चलना
जीवन की धरती पर
जीवन का विज्ञान
अधूरा है इन रूकावटों के बिना !
कभी तो
जीवन को
विज्ञान की कसौटी पर कसा जाए
समझा जाए एक नई दृष्टि के साथ
बदहाली की नई-नई कथाओं वालों इस
देश में

पढ़ी जाए यह कथा भी
कि ख़ाली जेबें
और ख़ाली पांव लिए
अपने गंतव्‍य तक
आज भी
किस तरह पहुँच रहे हैं लोग !
मछलियाँ

यह रहस्य नहीं है
कि मछलियाँ उदास नहीं होतीं
बिना थके हर वक्त जागते हुए
अपनी
आंखों की चमक

न जाने
कैसे बचा लेती हैं मछलियाँ
!
कुछ लोग कहते हैं
छोटीछोटी लड़कियों की तरह
होती हैं मछलियाँ !
काश
किसी रहस्य से परे
जीवन की सच्चाईयों का सौंदर्य
हमारे पास भी होता
तो हमारी उदासी
आसमान में छू मंतर हो जाती !
नदियों का जल
चांद की रोशनी
और सूरज का ताप
जो हमारे हिस्से आए
उनके होते भी
हम इतने उदास क्यों हैं?
ये सवाल
धरती पर ऊगे हर पेड़ पर
लदे दिखते हैं
पके फलों की तरह !
धरती उदास है
इन पके फलों के बोझ से
जैसे धँस रही दिनोंदिन अपने ही भीतर !
खत्म होने की गति में
फिर भी
बची हुई हैं बहुत सी चीजें
जैसे मछलियों की चंचलता
उनके न थकने का गीत !
बहुत सी चीजें
मरती नहीं कभी
दुनिया को सिरजने के
औजार की तरह
बची रहती हैं धरती के किसी कोने में !
 
 परिचय 
जन्म- 06 जून 1966
शिक्षा- एम.एस-सी. ( गणित )बी.एड.
सम्प्रति – व्याख्याता
प्रकाशित किताबें
कहानी संग्रह-  1. मुक्ति 2 . एक मरती
हुई आवाज
कविता संग्रह-  “वे खोज रहे थे
अपने हिस्से का प्रेम” 
परिकथा, हंस, अक्षर पर्व, समावर्तन, इन्द्रप्रस्थ भारती, माटी,पाठ ,साहित्य
अमृत, गंभीर समाचार   सहित अन्य पत्रिकाओं
में कहानियाँ प्रकाशित .
हंस, बया ,परिकथा, कथन, ,अक्षर पर्व ,सर्वनाम,समावर्तन,आकंठ  सहित अन्य पत्रिकाओं में कवितायेँ प्रकाशित
संपर्क . 92 श्रीकुंज , बोईरदादर , रायगढ़ (छत्तीसगढ़) मो. 9752685148

0 thoughts on “धरती के किसी कोने में – रमेश शर्मा की कविताऍं”

  1. कृपया पोस्ट में कवि की तस्वीर को बहाल कर दें तो अच्छा लगेगा। किसी तकनीकी कारण से यह हट गई लगती है।

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