अनुनाद

अब वे प्रेम के मकबरे बन चुकी हैं/स्‍वप्‍निल श्रीवास्‍तव  की कविताऍं 


   अगर   

 

अगर भोजन करते हुए तुम्हें 

इस बात की शर्म आए कि दुनिया में 

करोड़ों लोग भूखे हैं 

तो समझ लो कि तुम्हारे भीतर 

मनुष्य होने के लक्षण प्रकट 

हो रहे हैं 

 

अगर गला तर करते हुए तुम्हें 

प्यासे लोगों का ध्यान आए तो 

मान लो कि तुम्हारे आँख का पानी 

बचा हुआ है 

 

अगर किसी फूल को देखकर

तुम्हारा चेहरा खिल जाये 

तो यह इस बात का प्रमाण है कि 

तुम्हारा सौन्दर्य बोध जीवित है 

 

किसी स्त्री का दुख देख कर अगर तुम 

बिगलित हो उठो तो यह 

तुम्हारे भीतर की संवेदना का 

साक्ष्य है 

 

अगर तानाशाह की करतूतों पर 

तुम्हें गुस्सा आए तो यह इस बात 

की तसदीक है कि तुम्हारे भीतर 

एक नागरिक की योग्यता मौजूद है 

 *** 


   नराधमों   

 

नराधमों  !

दुनिया की सारी नदियां दुह डालो 

लूट लो सारे खनिज  

आसमान को बारूद के बादलों से 

भर दो 

उस शाख को काट डालो  

जिस पर बसा हुआ है 

तुम्हारा घर 

 

जब पृथ्वी पर सब कुछ ख़त्म 

हो जाएगा तो तुम्हें लगेगी भूख तब तुम 

डॉलर चबा कर अपनी भूख  मिटाना 

मनाना अपनी वीरानी का जश्न 

 

शवों के पहाड़ों पर खड़े होकर सोचना कि 

तुम ऐसे विजेता बन गये हो जिसके  पास 

शासन करने के लिए नही बची है प्रजा 

 

दुनिया के आदमखोरों

तुम्हारा सर्वनाश हो 

 *** 


   मशहूर होना   

 

जि़ंदगी भर पढ़ने लिखने के बावजूद 

मुझे कोई नहीं जानता 

लेकिन एक कत्ल के बाद 

वह रातोंरात शहर में मशहूर हो गया 

 

बहुत से लोग डर कर उसके 

दोस्त बन गये 

उसके दुश्मनों ने उसके सामने 

आत्मसमर्पण कर दिया 

 

उसे हर समारोह में बुलाया 

जाता है 

वह हर सभा का स्थायी सदस्य 

बन गया है 

 

राजनेता उसके पास आने लगे हैं 

अपने दल में शामिल करने को 

लालायित हैं 

 

एक मैं हूँ अपने कंधे पर 

साहित्य का झोला लिए हुए 

घूम रहा हूँ 

कोई मुझे जगह नही देता 

 

एक वह है जिसके लिए लोग 

अपनी जगह खाली कर रहे हैं  

 *** 


    जब हम बूढ़े होने लगते हैं   

 

जब हम बूढ़े होने लगते हैं 

तो जीवन के सबसे कोमल 

दृश्य याद आते हैं 

 

मुझे याद आती है माँ की सखी 

जो मुझसे कहती थी कि 

मैं भी तुम्हारी माँ हूँ 

 

वह सिर्फ़  कहती नही थी 

उसका सुबूत भी देती थी 

मैं जरा भी बीमार पड़ता था 

वह मेरी तीमारदारी में लग 

जाती थी 

 

जब उसकी मृत्यु हुई मुझे 

माँ के खोने  का दुख मिला 

 

बहन की सहेलिया भैया भैया 

कह कर चहकती थी 

उनकी शरारतें और चपलता 

देखते बनती थी 

 

राखी के दिन वे मेरी कलाइयाँ 

रंग बिरंगे धागों से भर देती थी 

और ढीठ होकर नेग मांगती थी 

 

जब वे  ब्याह में विदा होती थी 

तो मैं बहुत रोता था 

और वे भी मेरे कंधे भिगो 

देती थी 

 

वह सहपाठी लड़की याद आती है 

जिससे प्रेम का इजहार करने में 

महीनों बीत गये थे 

इसी बीच दूसरा लड़का उसके जीवन में 

दाखिल हो गया था 

 

उस समय मुझे अपनी नाकामी पर 

बहुत शर्म आयी थी 

 

अंधेरे में एक बेधड़क के साथ 

देखी गयी फिल्म को कभी नही 

भूल सकता जिसमें मुझे स्पर्श का 

पहला स्वाद मिला था 

 

एक एक करके प्रेम की अनेक 

जगहें याद आती हैं 

अब वे प्रेम के मकबरे बन 

चुकी हैं 

 *** 


   यथार्थ   

 

अंतिम समय आया तो 

तो सबसे पहले उनकी किताबें 

बेच दी गयी 

जिसे जतन से उन्होंने जिंदगी भर 

इकट्ठा किया था 

 

आलमारी की उस खाली जगह पर 

रखी जाएगी उनकी फ़ोटो 

 

उसके बाद उनके पासबुक की 

तलाशी ली गयी और रकम को 

कब्जे में लिया गया 

जिन्होंने उनसे उधार लिया था 

उन्हें तगादा भेजा गया 

 

फिर उनकी सन्दूक का ताला तोड़ा गया 

उसमें कुछ फ़ोटो और खत बरामद 

हुए 

 

पत्नी ने कहा – बहुत दुष्ट था यह आदमी 

उम्र भर इस रहस्य को छिपाता रहा 

 

बच्चों ने कहा – मम्मी –पापा के  बारे में 

अदब से बात करों , वे आपसे बहुत 

प्यार करते थे 

 

कितना बदल गया है हमारा यथार्थ 

उसमें स्मृति के लिए बहुत कम 

जगह बची है 

 *** 


   छिप छिप कर मिलना   

 

छिप छिप  कर मिलना 

है कितना सुंदर सपना ।

हो कोई अनजान सफर 

कोई कहे कि रूकना ।

तुम ठगहारे जन्म जन्म के 

सोच समझ कर ठगना ।

दिल  मेरा वीरान नगर है 

भूल गया कोई बसना ।

तुम जब देखो कोई मंजर 

मैं तेरी पलकों का उठना ।

तुम नदी मैं तट हो जाऊं 

देखे कगार का कटना ।

यह दर्पण तो झूठ बोलता 

मुझे देख कर सजना ।

यह तो काँटों भरी डगर है 

जरा संभल कर चलना ।

यह दुनिया धोखे की मंडी 

वो मेरी प्रिय छलना ।

 *** 


   देवानंद   

 

जब मैं देवानंद की फिल्मे देखता हूँ 

तो मुझे अपने मरहूम दोस्त की 

याद आती है 

 

देवानंद की तरह नही थी 

उसकी शक्ल सूरत  लेकिन वह 

देवानंद के अभिनय और अदाओ की 

बखूबी नकल करता था 

 

वह देवानंद की तरह टेड़ा और झुक कर 

चलता था 

 

आपको जानकर हैरत होगी कि उसने 

कि देवानंद की तरह दिखने के लिए 

उसने  किनारे के दांत तुड़वा दिए थे 

वह उसकी तरह बुलबुली रखता था 

और उसे सजाता सँवारता रहता था 

 

देवानंद की तरह बात करता था 

हम उसे टोकते थे कि तुम देवानंद नही 

प्रेम हो – तुम हमारी तरह क्यों नही 

बात करते 

लेकिन वह बाज नही आता था 

 

मासूम और दिलफेक तबीयत के दोस्त 

की शोहरत हमारे कस्बे में 

देवानंद की तरह थी 

 

जब हमें

 मजा लेना होता था 

उससे देवानंद के संवाद सुनते थे 

और वह देवानंद के जीवन के तमाम 

किस्सों के साथ देवानंद का अभिनय 

करता था 

 

आज न देवानंद है और न मेरा प्यारा दोस्त 

लेकिन उस यादों का क्या कीजै 

जो हमारी आँखों में बरसती रहती हैं 

 

कभी कभी उन दोनों को याद करने के लिए 

देवानंद की फिल्में देखता रहता हूँ 

 *** 


   जो मिला   

 

जो नही मिला 

उसका दुख क्या 

जो मिला है  वह  क्या 

कम  है 

 

हमें मिली है पृथ्वी 

समूचा आकाश और 

तारामंडल  

हमें मुफ़्त मिली है 

चांद सूरज की रोशनी 

और फेफड़ों में साँस 

भरने के लिए हवा 

 

हमें मिले हैं पर्वत 

नदिया आकाश 

समुन्दर और बारिशें 

 

हरे भरे जंगल और उसमें 

गीत गाते परिंदे 

मिले हैं 

 

तुम्हें और क्या चाहिए 

लालचियों  ?

 *** 


   स्‍वीमिंग पुल   


यह तालाब नही 

मेरा स्वीमिंग पुल है 

जहां मैनें तैरना सीखा था 

और शहर में आकर 

डूंब गया 

 

यह तालाब नही 

छोटा सा समुन्दर है 

कंकड़ फेको तो लहरे 

उठने लगती हैं 

 

इस तालाब में मैनें 

मछलियों से दोस्ती की थी 

उनसे घर बनाने की तरकीब 

सीखी थी 

 

इस तालाब में मुझसे लंबी 

दिखती है मेरी परछाई 

 

मैं यह सोच कर 

चौंक जाता हूँ 

क्या मैं सचमुच बड़ा हो 

गया हूँ ?

***    

            

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