अनुनाद

वो ज़‍िंदा थी – अर्चना गौतम ‘मीरा’

courtesy : google

दिन के 12 बज गए थे पुलिस को उग्रवादियों की लाशें उठवाते और महत्वपूर्ण दस्तावेज़ इकट्ठा करते-करते। बीती रात 6-7 घंटों तक दोनों ओर से धुआंधार फायरिंग के बाद पुलिस को कामयाबी मिली थी।

ये उग्रवादी दो राज्यों के इन सीमावर्ती इलाकों में काफी अरसे से सक्रिय थे, आये दिन लूटपाट, आगजनी, बलात्कार, हत्या जैसी घटनाओं को अंजाम देते रहते थे। जिन ग्रामीणों के घरों में ये पनाह लेते थे, उन्हें भी नहीं बख्शते थे। दहशत के मारे लोग पुलिस का सहारा लेने से कतराते थे।

बहरहाल, सावधानी बरतते हुए पुलिस चौकन्नी होकर अभी भी खोजबीन में लगी थी कि शायद कहीं कोई उग्रवादी छुपा न बैठा हो। छानबीन करते 2 सिपाही गांव की सरहद से होते घने जंगलों तक पहुँच गए थे। राइफलें कन्धों पर लटकाये दोनों जंगल में कुछ ही कदम आगे बढ़े थे कि चौंके। घनी झाड़ियों के पीछे एक इंसानी साया नज़र आ रहा था। वे पीछे हटकर छुप गए और हथियार संभालकर टोह लेने लगे।

अचानक एक उलझे-बिखरे बालोंवाली, लम्बी, छरहरी, 35-36 बरस की औरत उनकी उपस्थिति से अनजान झाड़ियों से निकलकर सामने आ खड़ी हुई। हावभाव से सामान्य उस औरत की आँखें पथरीली सी थीं। उसका एक हाथ जेब में था। दोनों पुलिसिए एकबारगी काँप उठे, कहीं इसकी जेब में कोई बम न हो।

अरे, यह क्या ! वह तो कोई जंगली फल निकाल कुतरने लगी। दोनों की जान में जान आई।

वह जैसे ही पीछे घुमी, दोनों ने फुर्ती से उसे धर दबोचा और कैंप की ओर ले चले।

जब वे उसे लेकर कैंप में पहुंचे, तब पुलिस गाँववालों से पूछताछ में लगी थी। बयान दर्ज़ किये जा रहे थे। एक ग्रामीण उस स्त्री को देखते ही चिल्ला उठा, “हुजूर ये तो उन्हीं उग्रवादियों की साथिन है। उन्हीं के साथ रहती है।”

उस उग्रवादी औरत का ज़िंदा पकड़ा जाना पुलिस के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी। इस घटना ने तमाम टीवी चैनलों को 3-4 दिनों की सुर्खियां और फुटेज मुहैया करा दी थी।

सत्ताधारियों के बीच एक-दूसरे पर हमेशा की ही तरह कीचड़ उछाला जा रहा था। सत्तारूढ़ पार्टी शेखी बघारने में मसरूफ थी कि किस तरह पुलिस के आला जांबाज़ों ने उग्रवादियों के इस गिरोह का सफाया कर दिया था। उस औरत से गहन पूछताछ की बात कही जा रही थी, ताकि उसके और साथियों का भी पता चल सके। चेहरे पर डेढ़ इंची मुस्कान चिपकाए डीजीपी साहब मुख्यमंत्री जी के साथ खड़े नज़र आ रहे थे। टीवी पर सब देख-सुन रहे लोग तरह-तरह के कयास लगाने लगे थे, उस औरत के बारे में। ज़रूर कोई मानव बम टाइप होगी। बेहद खतरनाक ट्रेनिंग होती है इनकी। बहुत सख़्तजान होते हैं ये। आसानी से मुँह नहीं खोलते।

चटाक! एसएचओ शोभा का झन्नाटेदार थप्पड़ लॉकअप रूम को गूंज गया। आतंकी महिला के फटे होंठों का खून उनकी हथेलियाँ रंग गया था। पिछले एक घंटे से वे उससे एक ही सवाल दोहराते थक गई थीं।

बाहर आकर उन्होंने इंतज़ार कर रहे मनोचिकित्सक डॉ. त्यागी से हाथ मिलाते हुए उस औरत के बारे में बताया, “डॉ. साहब, अब आप ही कुछ उगलवा सकते हैं। मैंने तो सारे हथकंडे अपनाकर देख लिए, पर उसने ज़बान खोली तक नहीं।”

परीक्षण के बाद डॉ. त्यागी इस नतीजे पर पहुंचे कि महिला अर्धविक्षिप्त है। उनका अनुमान था कि वह कोई पढ़ी-लिखी महिला लगती है, जो हो न हो, किसी हादसे का शिकार होकर इन आतंकवादियों तक पहुंची होगी।

ऑफिस से लौटते सुशांत के मन में यादों की टीस भर दी थी रेडियो पर बजते उस गीत की धुन ने। यह रिद्धिमा का फेवरेट गाना हुआ करता था। उस गीत की सुर लहरियों पर तैरता उसका मन अतीत के भंवर में डूबने को ही था कि उसके सेलफोन पर नंदिनी की चहकती हुई आवाज़ आई, “स्वीटहार्ट, कहाँ हो तुम ? पार्टी में चलना तो है न। यू नो दोज़ ट्रैफिक जैम्स।” सुशांत चिहूंक कर वर्तमान में लौट आया था। “हं… हाँ बस… आय एम अबाउट टु रीच डार्लिंग!”

ड्राइव करता सुशांत दोबारा उसी धुन में खो गया। रिद्धिमा के जाने के बाद उसने बड़ी मुश्किल से संभाला था खुद को, किन्तु वर्तमान की ख़ातिर उसे अतीत को भुलाना ही पड़ा था। समय ने ज़ख्म भर दिए थे, पर जैसा कि अक्सर होता है, यादों की कोई न कोई टीस उभर ही आती थी।

उसकी नवविवाहिता पत्नी नंदिनी पार्टी के लिए तैयार होकर उसी का इंतजार कर रही थी। नंदिनी ने उसका लैपटॉप लेते हुए कहा, “तुम फ्रेश हो जाओ, मैं कॉफी लाती हूँ।” कुछ मिनट बाद वह उसे कॉफ़ी का मग पकड़ाकर अपने मेकअप को टचअप करने चली गयी। सुशांत ने कॉफ़ी पीते हुए टीवी ऑन कर लिया। वह कॉफी ख़त्म कर जल्दी से चेंज करने की सोच ही रहा था कि उसके मग से कॉफ़ी छलक पड़ी।

सबूतों के आधार पर बताया जा रहा है कि यह महिला कोई आतंकवादी नहीं, बल्कि 5 वर्ष पूर्व हावड़ा-पुणे एक्सप्रेस से अगवा कर ली गयी एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर है… बताया जाता है कि इसका नाम रिद्धिमा है, जो मानसिक रूप से विक्षिप्त हो चुकी है…

वह निरुपाय सूखी आँखों रोता रहा। वह करे तो क्या ? कैसे बताए नंदिनी को। न जाने वह कैसे रिएक्ट करे! न्यूज़ रीडर लगातार ख़बरें सुनाती जा रही थी… कभी विषाद तो कभी तरस तो कभी बेचैनी और आक्रोश… उसे स्क्रीन धुंधलाती सी लगी। वह उसे ज़िंदा देखकर भी खुश नहीं हो पा रहा। कानों में जैसे कई धमाकों की गूंज एकसाथ हुई तभी नंदिनी आते हुए बोली, ‘ओह तुम अभी तक तैयार नहीं हुए?’ वह वार्डरोब से उसका सूट निकालने लगी, तो सुशांत ने टीवी ऑफ कर दिया और अपने को संभाल झट वॉशरूम चला गया।

पार्टी में सुशांत एकदम अन्यमनस्क होते हुए भी नंदिनी को कंपनी देने का दिखावा कर रहा था। वह न्यूज़ अभी तक उसके दिलोदिमाग पर छायी थी। उससे कुछ खाते-पीते भी नहीं बन रहा था। उसका गला सूख रहा था। ड्रिंक हाथ में लिए वह गिलास यूँ ही घुमाता जा रहा था। उसकी आँखों में रिद्धिमा का मासूम चेहरा बार-बार उभर रहा था। आँसू छलक पड़ने को बेताब थे। होंठों पर खोखली मुस्कुराहट लिए वह अपने मन की दुविधा, द्वंद्व और बेचैनी से जूझ रहा था।

रिद्धिमा तुम ज़िंदा हो और इस हाल में हो,’ वह विह्वल होकर जैसे खुद से बातें करने लगा, ‘कहाँ-कहाँ नहीं ढूंढा मैंने तुम्हें। और तुम मिली भी तो कब…! कितना आगे बढ़ आया हूँ। मैं चाहूँ भी, तो पीछे नहीं लौट सकता।

पूरी रात दुख में डूबा सुशांत जागता रहा। उसका मन हाहाकार कर रहा था। क्या-क्या नहीं झेला होगा रिद्धिमा ने। सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि इतनी बर्बरता के बावजूद जिन दरिंदों ने उसे नहीं बख्शा… उसकी इज़्ज़त लूटने… उससे मारपीट करने के बाद भी उसे साथ ले गए उसकी मृतप्राय देह को रौंदने, तो न जाने कौन से जुल्म न ढाए गए होंगे उसपर। कितनी बार मरती रही होगी वह।

वे उग्रवादी उसे साथ ले गए कि लोगों में उनकी दहशत फैली रहे… वे चाहे जो करें… निर्दोष जनता बेज़ुबान होकर देखती रहे। खुद नाइंसाफी को हथियार बनाने वाले ये लोग… किस इन्साफ कि बात करते हैं।

रात बीत गयी, लेकिन सुशांत की बेचैनी खत्म नहीं हो पायी। नृशंसों ने रिद्धिमा का क्या हाल कर दिया है।

सुबह सुशांत का उतरा हुआ चेहरा और लाल आँखें देख नंदिनी पूछ बैठी, “क्या बात है, तुम बेहद परेशान लग रहे हो…,” उसने प्यार से सुशांत के बालों में उंगलियां फेरीं, “आर यू ऑलराइट ? तुम्हें बुखार तो नहीं…”

ओह नो। नथिंग। आय एम कम्प्लीटली फाइन। बस एक प्रोजेक्ट के प्रेजेंटेशन की टेंशन…

सुशांत ने खु़द को भरसक संयत रखते हुए नाश्ता ख़त्म किया और ऑफिस के लिए निकल पड़ा। कार ड्राइव करता वह गहरी अंतर्वेदना और मानसिक पीड़ा से जूझ रहा था। सुबह उसने अपने सेलफोन पर रिद्धिमा की माँ की मिस्डकॉल देखकर इग्नोर कर दी थी। डेढ़ साल हुए जब उनसे आख़‍िरी बार बात हुई थी। नंदिनी को कैसे बताये कि रिद्धिमा जीवित है और इन हालात में है।

वह बोझिल मन से एक-एक कदम बढ़ाता हुआ अपने केबिन में पहुंचा। काम रोज़ की तरह था, पर वह सब दरकिनार कर बाएं हाथ से टाई की नॉट ढीली करता हुआ चेयर पर अधलेटा, निढाल पड़ गया। उसका दिल फटा जा रहा था। कुछ ही पल उसने अपने पहले प्यार, अपनी रिद्धिमा के साथ बिताये थे कि ज़िन्दगी ने उसे, उनसे छीनकर दूर कर दिया था। कैसा है यह जीवन ? कितने कड़े इम्तेहान लेगी ज़िन्दगी उसके। ऐसा महसूस हो रहा है कि वह आगे किसी डेड एंड पर आ खड़ा हुआ है और पीछे मुड़ पाना कतई नामुमकिन है। कितने सपने संजोये थे रिद्धिमा और सुशांत ने.. और सब… किसे दोष दे वह… ईश्वर… वक़्त… तक़दीर…?

रिद्धिमा की माँ किसी रिश्तेदार को पुलिस हेडक्वार्टर लेकर पहुंची थीं। एसएचओ शोभा उनसे बेहद सहिष्णुता और सहृदयता से मिलीं। उन्होंने ही रिद्धिमा के केस की पुरानी फाइल पूरी मुस्तैदी से ढूंढ निकाली थी। उन्होंने माँजी को रिद्धिमा के ठीक सामने खड़ा कर दिया था, “देखिये हो सकता है आपको पहचान ले वह।” लेकिन उसने माँ को नहीं पहचाना। उसकी ख़ामोशी नहीं टूट सकी।

रिद्धि, मेरी बच्ची, तू सचमुच ज़िंदा है।” वे उससे लिपटकर विलाप कर रही थीं, पर वह थी कि निर्निमेष शून्य में घूरे जा रही थी।

चेयर पर बैठे सुशांत की तन्द्रा अचानक फोन की घंटी बजने से भंग हो गयी थी, प्रोजेक्ट मैनेजर की कॉल थी। उससे बातें करने के बाद भी वह फोन हाथ में पकड़े था। उसने मेज पर रखे गिलास से कुछ घूंट पानी के भरे और लम्बी सांस भर मानो खु़द से ही खु़द को दिलासा दिया।

हैलो सुशांत बेटा…” माँजी की रुंधी सी आवाज़ से वह एकाएक चौंक पड़ा। अनजाने ही उसके हाथों ने माँजी का फोन नंबर मिला दिया था।

हाँ माँ, मैं बोल रहा हूँ… नमस्ते…”और वह आगे कुछ कहे इससे पहले ही वे फूट-फूटकर रो पड़ीं। इधर फोन कान से लगाए सुशांत के आँसुओं का बाँध भी भरभराकर टूट पड़ा था।

बेटा मैं तुम्हें तकलीफ नहीं देना चाहती थी… ” वे कहती जा रही थीं.. “जानती हूँ तुम्हारी ज़िंन्दगी में रिद्धिमा की अब कोई जगह नहीं, पर तुम्हें मजबूर होकर परेशान कर रही हूं… वह पत्थर की तरह हो गयी है… उसने मुझे पहचाना तक नहीं… शायद तुम्हें पहचान ले… क्या तुम आ सकोगे…” बड़ी मुश्किल से बोल पाईं वे।

हाँ माँ… आ रहा हूँ मैं… आप संभालिये अपने आपको…” सुशांत भावुक होकर बोला।

और मन ही मन कोई फैसला लेकर वह एकाएक उठ खड़ा हुआ था… निर्द्वंद्व। उसके बढ़ते कदमों में एक तेज़ी थी… अपने वर्तमान की सहूलियों के लिए अपने उत्तरदायित्वों से मुँह कैसे मोड़ सकता है वह।

रास्तेभर वह पूरी घटना टुकड़ों-टुकड़ों में उसके ज़ेहन में कौंधती रही…

रिद्धिमा… उसकी पहली बीवी… अपनी माँ से मिलकर हावड़ा-पुणे एक्सप्रेस से लौट रही थी…

ट्रेन पर उग्रवादियों ने हमला कर दिया था और वे यात्रियों को लूट रहे थे…. किन्हीं बुज़ुर्ग दंपती को प्रताड़ित होते न देख पायी थी वह। प्रत्यक्षदर्शी, सुरक्षित बचे सहयात्री उस लूटपाट और दहशतगर्दी के गवाह थे। पुलिस तहकीकात में भी सामने आई थीं कुछ उड़ती-उड़ती बातें… आतंकियों ने उसे बुरी तरह पीटा था, भरी ट्रेन में उसकी इज़्ज़त लूटी थी… दहशत से सहमे लोगों में से उसे बचाने कोई नहीं आया था। साहस दिखाने की सजा फिर भी कम लगी थी उन्हें, तो वे उसे साथ लें गए थे, घसीटते हुए… अँधेरे में लापता हो गए थे वे विध्वंसकारी और पीछे छूट गयी थीं रिद्धिमा की चीखें। ट्रेन में बैठे यात्रियों के दिल दहल उठे थे।

जब सुशांत पुलिस हेडक्वार्टर पहुंचा, तो माँजी उसके गले लगकर सिसक पड़ीं। एसएचओ शोभा ने सुशांत से कहा, “डिस्चार्ज पेपर्स तो मैंने तैयार करा दिए हैं। देखिये आपको भी पहचानती है या नहीं… अब तक वह अपनी माँ से एक भी शब्द नहीं बोली।”

सुशांत को एकटक देखते रहने के बाद रिद्धिमा चीखकर बेहोश हो गयी होठों से सुशांत का नाम फिसला, ‘सु… शां… त… और वह गिर पड़ी थी। कोई आधे – पौने घंटे बाद वह जब दोबारा होश में आई, तो फिर वही मौन निश्चलता उसपर छा चुकी थी। पुनः पत्थर सी जड़वत हो गयी रिद्धिमा। सुशांत ने माँजी को ढांढस बंधाते हुए आखिरकार नंदिनी को फोन किया, ‘नंदिनी… उसके शब्द आँसुओं में घुलने लगे थे। नंदिनी का स्वर सुशांत के कानों से सीधा उसके हृदय में उतरता चला गया… “मुझे इतनी देर बाद क्यों बताया सुश… मैं अभी पहुंचती हूँ..”

कितना गौरवान्वित अनुभव किया सुशांत ने स्वयं को, जब नंदिनी ने मांजी के पैर छुए थे… “माँ, यदि मैं रिद्धिमा की जगह होती तो ? आज से आप और रिद्धिमा हमारी ज़िम्मेदारी हैं… आपने ऐसा कैसे सोच लिया कि आपकी एक ही बेटी है।”

सुशांत… हमें जल्द से जल्द रिद्धिमा को किसी अच्छे रिहैबिलिटेशन सेंटर में ले जाना होगा… सारा खर्चा हम उठाएंगे…” प्यार और सम्मानभरी नज़रों से सुशांत उसे देखता रह गया और वह रिद्धिमा को थाम कार की ओर बढ़ चली।

 

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