अहम्मन्य हुलफुल्लेपन के [अंतर्]राष्ट्रीय दुष्परिणाम – विष्णु खरे
(इस लेख को मेल द्वारा भेजते हुए सूचित किया गया है कि इसे मूलत: जनसत्ता के लिए लिखा गया था किन्तु जनसत्ता सम्पादक द्वारा यह
(इस लेख को मेल द्वारा भेजते हुए सूचित किया गया है कि इसे मूलत: जनसत्ता के लिए लिखा गया था किन्तु जनसत्ता सम्पादक द्वारा यह
अविनाश मिश्र अब युवा हिंदी कविता का ख़ूब परिचित नाम हैं। कविता में उनका स्वर अपनी उम्र से बहुत आगे का स्वर है। अनुभव-संसार की
कैसा प्रेम स्त्री ने पूछा, कैसा प्रेम? पुरुष ने कहा, किसान सा! शिकारी सा नहीं, बेरहमी से जो ख़त्म करते हैं, अपनी चाहत को. किसान,
यहां आशीष नैथानी की तीन कविताएं दी जा रही हैं। वे हैदराबाद में साफ़्टवेयर इंजीनियर हैं और हिंदी से बाहर के अनुशासन से कविता में
अनवर सुहैल का नाम अरसे से हिन्दी की दुनिया में ख़ूब जाना-पहचाना नाम है। लघुपत्रिका प्रकाशन और कविता-कहानी लेखन तक उनकी सक्रियता की कई दिशाएं
मृत्युंजय की छवि के पी की नज़र में अबकी कहाँ जाओगे भाई ! इनके घर में गिरवी रक्खा, उनके बंद तिजोरी इनने पुश्तैनी
स्मृतियां यादें जीवन के नन्हें शिशु हैं उम्र के साथ बढती जाती है उनमें नमी जैसे दरख्त की सबसे ऊंची पत्ती में आसमान भरता जाता
अशोक इस बार न्याय की दस कविताओं के साथ उपस्थित है। गो उसकी हर कविता मनुष्यता के पक्ष में न्याय की अछोर-अटूट पुकार है लेकिन
स्वानुभूति- हिन्दी दलित आत्मकथाओं में जो एक महत्वपूर्ण तथ्य सामने आता है वो है इन आत्मकथाओं में स्वानुभूति तथा सहानुभूति का इस पर
ये ऐसे समय की कविता है जब मारे दिए जाने के लिए जन्म लेना भर काफ़ी होता है। समकाल की कड़ी पड़ताल अमित की इस