नन्हीं रूथ – येहूदा आमीखाई की कविता
तस्वीर यहाँ से साभार कभी-कभी मैं तुम्हें याद करता हूं नन्हीं रूथ हम अलग हो गए थे अपने सुदूर बचपन में
तस्वीर यहाँ से साभार कभी-कभी मैं तुम्हें याद करता हूं नन्हीं रूथ हम अलग हो गए थे अपने सुदूर बचपन में
वह लौट कर आया और गोली मार दी. उसने उसे गोली मार दी. जब वह लौटा, उसने गोली मारी, और वह
कल एक युवतर कवि से देवीप्रसाद मिश्र का ज़िक्र चला तो मुझे ये पोस्ट याद आई। रमज़ान के पवित्र महीने में
दहलीज़-७ के ‘फॉलो-थ्रू’ में व्योमेश शुक्ल की कविता का ज़िक्र हुआ था. यह पोस्ट उसी ‘फॉलो-थ्रू’ का ‘फॉलो-थ्रू’ है. लेकिन यानी
चयन तथा प्रस्तुति : पंकज चतुर्वेदी तस्वीर यहाँ से साभार ‘कला क्या है’ कितना दुःख वह शरीर जज़्ब कर सकता है
तस्वीर यहाँ से साभार ‘कवि’क़लम अपनी साध ,और मन की बात बिलकुल ठीक कह एकाध . यह कि तेरी-भर न हो
इस पोस्ट पर आ रही टिप्पणियों को देखते हुए इसकी तारीख आगे बढ़ा दी गई है। सबसे यही प्रार्थना है कि
चयन एवं प्रस्तुति : पंकज चतुर्वेदी कविता , युग की नब्ज़ धरो कविता , युग की नब्ज़ धरो अफ़रीका , लातिन
वैसे तो ये दोनों कविताएँ अच्छी हैं लेकिन परंपरा के हाथ भी पीठ पर हों और कवि का अंदाज़ नव्यतम हो,
तुम्हारे पंजे देखकरडरते हैं बुरे आदमी तुम्हारा सौष्ठव देखकरखुश होते हैं अच्छे आदमी यही मैं चाहूँगा सुननाअपनी कविता के बारे में