बापू, तुम मुर्गी खाते यदि – निराला
एक गाँधी अध्ययन केन्द्र के सेमिनार का निमंत्रण मिलने पर अचानक निराला की यह कविता याद आने लगी है ………..इसके लगाने
एक गाँधी अध्ययन केन्द्र के सेमिनार का निमंत्रण मिलने पर अचानक निराला की यह कविता याद आने लगी है ………..इसके लगाने
सोकार्दा इस्त्री सावित्री, जिन्हें आमतौर पर सोक सावित्री के नाम से जाना जाता है, 1968 में मुस्लिम बहुल इंडोनेशिया के हिन्दू
हमारे सहलेखक पंकज चतुर्वेदी अनुनाद पर एक स्तम्भ शुरू कर रहे हैं। यह विशेष रूप से नए लेखकों के लिए है।
अनुनाद पर मेरी पहली पोस्ट के रूप में प्रस्तुत है जर्मन अभिव्यंजनावादी कवि जार्ज हेइम (३० अक्तूबर १८८७ – १६ जनवरी
युवा आलोचक प्रियम अंकित अनुनाद के सहलेखक हैं पर इंटरनेट की कुछ बुनियादी परेशानियों के कारण अपनी पहली पोस्ट नहीं लगा
दोस्तो / पाठको ! ये एक पुरानी कविता है, जिसे अपनी उलझनों के कारण एक पत्रिका में मैंने छपते छपते रोक
तस्वीर यहाँ से साभार सीधी-सी बातशक्ति होती है मौन ( पेड़ कहते हैं मुझसे )और गहराई भी ( कहती हैं जड़ें
सीमा यारी की एक प्रेमकविता यादवेन्द्र जी पहले अनुनाद पर लगा चुके हैं। आज प्रस्तुत हैं कुछ और कविताएं। अनुवाद यादवेन्द्र
कपिल देव हिन्दी के सुपरिचित आलोचक-समीक्षक हैं। उन्होंने हमें ये कविता भेजी है, जिसके बारे में उनका कहना है कि ये
आज पाब्लो नेरुदा का जन्म-दिन है. मैं इसे कभी नहीं भूलता क्योंकि इसी दिन मेरी पत्नी का भी जन्म-दिन होता है.