ईरान से पर्तोव नूरीला की कविता – चयन, अनुवाद तथा प्रस्तुति : यादवेन्द्र
पर्तोव नूरी़ला इरान की प्रखर कवियित्री हैं। १९४६ में तेहरान में जनमी, वहीँ पलीं बढीं और पढीं। बाद में तेहरान यूनिवर्सिटी
पर्तोव नूरी़ला इरान की प्रखर कवियित्री हैं। १९४६ में तेहरान में जनमी, वहीँ पलीं बढीं और पढीं। बाद में तेहरान यूनिवर्सिटी
इस अनुवाद और प्रस्तुति के लिए अनुनाद सिद्धेश्वर सिंह यानी जवाहिर चा का आभारी है। निज़ार क़ब्बानी (1923-1998) की गणना न
इस कविता का अनुवाद भी ‘दहलीज़’ के लिए ही किया गया था. अब शिरीष का अनुसरण करते हुए- बिना ‘दहलीज़’ का
शब्द किस तरहकविता बनते हैंइसे देखोअक्षरों के बीच गिरे हुएआदमी को पढ़ोक्या तुमने सुना कि यहलोहे की आवाज़ है यामिट्टी में
अनुनाद के सहलेखक पंकज चतुर्वेदी नए कवियों और पाठकों के मार्गदर्शन के लिए “दहलीज़” नामक एक स्तम्भ चला रहे हैं लेकिन
आलोक श्रीवास्तव की इस कविता को दरअसल स्त्रियों पर लिखी गई आधुनिक कविता और स्त्री विमर्श का संक्षिप्त आलोचनात्मक काव्येतिहास भर
बक ही दिया जाए कुफ़्र: कविता हमें बचा सकती है, उस तरह नहीं जैसे कोई मछुआरा डूबते हुए तैराक को खींच
हेमंत स्मृति सम्मान तथा महाराष्ट्र साहित्य अकादमी के संत नामदेव पुरस्कार से सम्मानित युवा कवि हरि मृदुल की यह कविता संवाद
मेरी कविता ” मेरे समय में रोना” को पढ़ कर बड़े भाई अनूप सेठी जी ने अपनी यह कविता मेल से
यह कविता प्रतिलिपि में प्रकाशित हुई है तथा पिकासो की यह विख्यात पेंटिंग यहाँ से साभार ! एक बच्चा सड़क पर