अबू ताहा अपनी छत पर कबूतर पालता है: एप्रिल जॉर्ज
एप्रिल जॉर्ज की यह कविता (मूल अंग्रेजी में) दि नवेम्बर थर्ड क्लब के अद्यतन अंक में प्रकाशित हुई है. अबू ताहा
एप्रिल जॉर्ज की यह कविता (मूल अंग्रेजी में) दि नवेम्बर थर्ड क्लब के अद्यतन अंक में प्रकाशित हुई है. अबू ताहा
ज्योत्स्ना शर्मा (११ मार्च १९६५-२३ दिसम्बर 2008) और उनके लेखन के बारे में साहित्य की दुनिया अनजान है। इसी महीने आये
______________________ 6 दिसंबर 2006 पहली और अंतिम बार आज 6 दिसम्बर 2006 है हमेशा की तरह बच्चे प्रार्थनाएं और राष्ट्रगान हल्का
एक नई कविता ….. रात भरपुरानी फ़िल्मों की एक पसन्दीदा श्वेत-श्याम नायिका की तरहस्मृतियां मंडरातीसर से पांव तक कपड़ों से ढंकींकुछ
कविचित्र यहाँ से साभार सभ्यता के गलियारे में रखे हुए टायर–चेल्सिया, मैसाच्युसेट्स“जी हुज़ूर, चूहे हैं”मालिक-मकान ने जज से कहा,“पर मैं किरायेदारों
हाल ही में लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट ने देश की राजनीति में हलचल मचा दी है और इस सन्दर्भ में संबोधन
भारतभूषण तिवारी द्वारा लगायी पिछली पोस्ट की एक कविता “दास्ताने -रेचल कोरी” के क्रम में प्रस्तुत एक और महत्त्वपूर्ण कविता…… अनुवाद
चौरासीवां जन्मदिन चीज़ें बेहतर हो जायेंगी इस उम्मीद में बिताये गए इन सब बरसों के बाद ख़ुशी मनाने का कोई
स्याह कपड़ों वाली औरतें स्याह कपडे पहने कुछ यहूदी और फिलिस्तीनी औरतें हर जुमे की शाम पश्चिमी तट और गाज़ा पर
गुज़री सदी में उर्दू शाइरी का नाज़ो-अंदाज़ बदलने वालों में फैज़ का नाम प्रमुख है. उनकी शाइरी ‘घटाटोप बेअंत रातों’ में