अनुनाद

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किरीट मंदरियाल की कविताएं

किरीट मेरे लिए व्यक्ति से ज़्यादा एक व्यक्तित्व हैं। उन्हें अपने अनुभव अभी प्राप्त करने हैं। वे अपने पहाड़ी गांव से नस-नाल आबद्ध हैं और बोलते-बतियाते उनके भीतर पहाड़ जैसे जी उठता है।

यहां उनकी कुछ कविताएं दी जा रही हैं, जो दरअसल उनके ठेठ भौगोलिक परिवेश से भिन्न कुछ भीतरी और निजी संघर्षों के छोटे-मोटे आख्यान-प्रत्याख्यान भर हैं। उनकी उम्र का नयापन या कहिए कि कच्चापन, आपको इनमें दिखेगा, जो मेरे हिसाब से इन कविताओं को एक भोला-भाला स्वर प्रदान करता है। हमारे सबसे ख़राब और ख़तरनाक समय में भी इन कविताओं में बसी उम्मीद भले बचकानी कही जाए पर लुभा भी बहुत रही है। बाक़ी आप बताइए !



इस महान सदी के आरम्भ में
इस
महान सदी के आरम्भ में
आम आदमी के लिए
शोकगीत लिखने वाले
कवियों से
मैं परिचित नहीं

मैं परिचित नहीं
अंत की घोषणा करने वाले
विद्वानों से
साहित्य के गढ़ और मठ कविता के
मेरी पहुंच से बाहर हैं

कम
बहुत ही कम और सीमित है
मेरा परिचय
और अपनी इस सीमा से बंधा मैं
खुश हूँ बहुत

खुश हूं
कि जहां रहता है आदमी
अपनी पूरी मुश्किलों और संघर्षों के साथ
मैं भी रहता हूं वहीं
और सुरक्षित है मेरी कविता भी
जीवन के उन्हीं
छोटे-बड़े दुखों और सुखों में
कहीं !
***

हम तुम मिलेंगे

हम-तुम मिलेंगे
इसी को शायद कहते हैं उम्मीद
सपना इसी को कहते हैं
इसी को शायद कहते हैं खुशी

तो एक उम्मीद को करने के लिए पूरा
साकार करने के लिए एक स्वप्न
पाने के लिए खुशी
हम-तुम मिलेंगे

मिलेंगे और देखेंगे तब
दुनिया
जो ज्यादा खूबसूरत होगी !
***

‘क’ से बनती है ‘कोशिश’
और ‘कामयाबी’ भी
‘क’ न होता तो क्या कहलाती ‘कविता’ ?

क्या होता फिर प्रश्नों का
कैसे कहते फिर हम यह सब –
क्यों ?
कब ?
कैसे ?
क्या ?
कहां ?
*** 

0 thoughts on “किरीट मंदरियाल की कविताएं”

  1. आभार किरीट जी की इस प्रस्तुति के लिए.
    स्वतंत्रता दिवस की बहुत बधाई एवं शुभकामनाऐं.

  2. बहुत सुन्दर कविता है भाई। बधाई। शुभकामनाएं। प्रश्न करने की कोशिशें जारी रहें।

    ‘क’ से बनती है ‘कोशिश’
    और ‘कामयाबी’ भी
    ‘क’ न होता तो क्या कहलाती ‘कविता’ ?

    क्या होता फिर प्रश्नों का
    कैसे कहते फिर हम यह सब –
    क्यों ?
    कब ?
    कैसे ?
    क्या ?
    कहां ?

  3. ‘क’ से बनती है ‘कोशिश’
    और ‘कामयाबी’ भी
    ‘क’ न होता तो क्या कहलाती ‘कविता’?
    क्या होता फिर प्रश्नों का
    कैसे कहते फिर हम यह सब –
    क्यों ?
    कब ?
    कैसे ?
    क्या ?
    कहां ?
    बहुत अच्छी लगी….ये…
    स्वतंत्रता दिवस की बहुत बधाई एवं शुभकामनाऐं

  4. Bahut sunder K na hota to kya kehlati kawita aur kaise karte prashn .
    Aur
    खुश हूं
    कि जहां रहता है आदमी
    अपनी पूरी मुश्किलों और संघर्षों के साथ
    मैं भी रहता हूं वहीं
    और सुरक्षित है मेरी कविता भी
    जीवन के उन्हीं
    छोटे-बड़े दुखों और सुखों में
    कहीं !

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