कविता की सजग आँखों में अब भी एक शिकायत भरी प्रतीक्षा है
कुमार विकल आज आज़ादी की सालगिरह है। हर कहीं झंडे फहराए जाए रहे हैं। भारतमाता को याद किया जा रहा है। पैंसठ साल की इस
कुमार विकल आज आज़ादी की सालगिरह है। हर कहीं झंडे फहराए जाए रहे हैं। भारतमाता को याद किया जा रहा है। पैंसठ साल की इस
मैं ब्लागिंग की अपनी शुरूआत में काफी सक्रिय रहा…फिर ग़ायब-सा हो गया या कहिए कि होना पड़ा। इस बीच कुछ बहुत सुन्दर और सार्थक कर दिखाने
अशोक कुमार पांडेय हिंदी की युवा कविता के कुछ सबसे सधे हुए कवियों में है, जिसके सधे हुए होने में भी कुछेक दिलचस्प पेंच हैं।
कपिलेश भोज अनिल कुमार कार्की के अनुनाद पर छपे आलेख से हमने लोकभाषाओं की ओर एक नई राह खोली है। लोकधर्मी रचनाशक्ति की शिनाख़्त हमारे
बिक्रम के ये पद मृत्युंजय के मुख से प्रकट हुए हैं। मृत्युंजय वामदिशा वाले सक्रिय साहित्यकर्मी हैं। कविताएं लिखते हैं, आलोचक हैं और जनवादी कविता
आमतौर पर रोजमर्रा के व्यवहार में तितलियों को आसानी से पहुँच बना सकने वाली मनमौजी स्त्रियों के तौर पर लिया जाता है इसीलिए भारत और दुनिया
असद ज़ैदी आज के दिन हमारे प्रिय अग्रज कवि असद ज़ैदी की यह कविता अनुनाद के पाठकों के लिए…साथ ही परिकल्पना प्रकाशन को शुक्रिया, जहां
फेसबुक से इन दिनों साहित्य की दुनिया में आवाजाही बढ़ी है। अनुनाद ने फेसबुक से कुछ प्रस्तुतियां की हैं..अब उसी दुनिया में मिले और मित्र
नीलोत्पल नीलोत्पल की कविता का अनुनाद को इंतज़ार था। तीन साल पहले मेरा ध्यान उनकी कविता की ओर गया। ये कविताएं बहुत चौंकाती नहीं थीं
कुमाऊंनी कविता की दशा-दिशा के बहाने गिर्दा यह कुमाऊंनी कविता के बदलते हुए प्रतिमान और शिल्प की बात है। जब भी कुमाऊंनी कविता की भंगिमा