नाज़िम हिकमत की दो कविताएं : अनुवाद एवं प्रस्तुति – यादवेन्द्र
नाज़िम हिकमत(1902 – 1963 ) उम्मीद मैं कवितायेँ लिखता हूँ पर उनको कोई नहीं छापता एक दिन
नाज़िम हिकमत(1902 – 1963 ) उम्मीद मैं कवितायेँ लिखता हूँ पर उनको कोई नहीं छापता एक दिन
सुषमा नैथानी मूलत: जीन-विज्ञानी हैं। नैनीताल में उसी विश्वविद्यालय में पढ़ी हैं, जिसमें मैं भी पढ़ा हूं और अब पढ़ाने की जिम्मेदारी निभा रहा हूं।
कुछ दिन पहले प्रतिलिपि ब्लाग पर मोनिका कुमार की कुछ कविताएं प्रकाशित हुईं। कविताओं के साथ एक लम्बी टिप्पणी भी गिरिराज किराड़ू ने दी और प्रस्तुति
देवीप्रसाद मिश्र का लेखन समकालीन हिंदी संसार की एक उपलब्धि है। उनके यहां काव्यभाषा का गद्य में घुल जाना कविता को तो अलग रूपाकार देता
यादवेन्द्र जी अनुनाद के सच्चे संगी-साथी हैं। उन्होंने विश्वकविता से कुछ बहुत शानदार अुनुवाद अनुनाद को दिए हैं। वे अनुनाद के सहलेखक हैं पर ख़ुद
बहुत प्रसन्नता और सन्तोष का विषय है कि हमारे प्रिय कवि-आलोचक पंकज चतुर्वेदी कोई साल भर के विराम के बाद ब्लाग और नेट की दुनिया
व्योमेश शुक्ल समकालीन हिंदी कविता और आलोचना का सुपरिचित नाम है। कम लोग जानते हैं कि वे रंगकर्म में भी गहरी दिलचस्पी और भागीदारी रखते
‘हम बचे रहेंगे’ एक-दूसरे के आसमान में, आसमानी संतरंगों की तरह
दोस्त रिजवानउस लड़की का क्याजो कर आई थी मुंह कालासुबह के उजास में ? भाई, वह है अबतीन बच्चों की अम्मातीन कोठरी का मकां उसकासोती
चित्र यहां से साभार धागेनतिनकधिन – व्योमेश शुक्ल एक लड़का तबला बजाना सीख रहा है हारमोनियम पर बजते लहरे के साथ अपने उत्साही अपरिष्कार में