रेत मजदूर को देखते हुए – पंकज मिश्र
फेसबुक पर कभी-कभी बहुत अच्छी कविताएं मिल जाती हैं। अशोक कुमार पांडेय के सौजन्य से यह कविता अभी मिली…जिसे अनुनाद पर लगा देने का लोभ
फेसबुक पर कभी-कभी बहुत अच्छी कविताएं मिल जाती हैं। अशोक कुमार पांडेय के सौजन्य से यह कविता अभी मिली…जिसे अनुनाद पर लगा देने का लोभ
कात्यायनी हमारे समय की सुपरिचित और महत्वपूर्ण कवि हैं। उनकी ये कविता ‘चक दे’ की चकाचौंध से बहुत पहले की है। इस कविता को बार-बार पढ़ता
अमित उपमन्यु ने अभी हाल में ही कविताएँ लिखना शुरू किया है. कुछ कविताएँ परिकथा के नवलेखन अंक में आई हैं और कुछ अन्य पत्रिकाओं
भगवत रावत नहीं रहे। बहुत प्यार करने वाले बुज़ुर्ग कवि। फोन पर कितनी बातें होती थीं उनसे। वो भारी आवाज़ अब कभी नहीं सुनाई देगी. निकट की कविता का एक पूरा इतिहास घूमने लगता है आंखों के आगे। जानलेवा
नैनीताल के भोटिया मार्केट यानी तिब्बती मूल के लोगों के बाज़ार और तिब्बत को लेकर चल रहे आन्दोलन में उनकी भागीदारी को देखते हुए लगातार
धनुष पर चिड़िया कवि: चंद्रकांत देवताले चयन व संपादन: शिरीष कुमार मौर्य प्रकाशक:शाइनिंग स्टार एवं अनुनाद उत्तराखंड मूल्य:रु.200 धीरे धीरे उम्र की छलॉंगें लगाते हुए
इस वीडियो में गिर्दा होली नहीं गा रहे हैं …ये उनका अलग गीत है पर उनकी याद दिनों दिन बढती ही जाती है और वार-त्यौहार
रसोईघरों में तीन सौ साठ अंशों की व्यस्तता के फलक में हर लम्हा-हर एक छोटे से कोण में मौजूद दिखतीं स्त्रियाँ नमक-मिर्च, शक्कर, हल्दी-धनिया और
वहाँ कोई नहीं है मैं भी नहीं वह जो पड़ी है देह हाथ बांधे दांत भींचे बाहर से निस्पन्द भीतर से रह-रहकर सहमती थूक निगलती
मेरा पालतू कुत्ता जो पहले चिडि़यों को हैरत से तका करता और भौंकता था घात लगाने लगा है आजकल उनपर छोटे पिल्ले से जवान होते