अदम गोंडवी की ग़ज़लें
बिवाई पड़े पांवों में चमरौंधा जूता , मैली – सी धोती और मैला ही कुरता , हल की मूठ थाम -थाम सख्त और खुरदुरे पड़
बिवाई पड़े पांवों में चमरौंधा जूता , मैली – सी धोती और मैला ही कुरता , हल की मूठ थाम -थाम सख्त और खुरदुरे पड़
(जीवन स्थितियों का इतना गहरा अवसाद, रचना के अनुभव में निहित तनाव की इतनी आवेगपूर्ण लय, इतना ताजगी भरा चाक्षुक बिंब विधान और पैराबल्स, काव्यात्मक
अजेय हिमाचल के सुदूर इलाके लाहौल में रहने वाले नौजवान कवि हैं। उनकी कवितायें पहल जैसी पत्रिकाओं में छपी हैं। अनुनाद उन्हें अपने साथ पा
मुझसे साफ़ करने को कहा जाएगा मुझसे साफ़ करने को कहा जाएगाकूड़ा जो मैं फैला रहा हूँ मेरी स्मृति इसी कूड़े में इच्छाशक्ति गई कूड़े
४ दिन पहले मैं पौडी के सुदूर गाँव की यात्रा पर था और पता नहीं क्यों मुझे वीरेन दा की ये कविता याद आती रही।
कवितार्थ प्रकाश -एक कुछ भी कहता हो नासाकम्प्यूटर की स्क्रीन कितनी ही झलमलाएपर इतना तय हैकि किसी सत्यकल्पित डिज़िटल दुनिया या फिर सुदूर सितारों से
जिम कार्बेट नेशनल पार्क में एक शामयही शीर्षोक्त स्थानजिसे मैं अपनी सुविधा के अनुसार आगे सिर्फ जंगल कहूँगामनुष्यों ने नहीं बनाया इसेहमने तो चिपकाया महज
शिला का ख़ून पीती थी शिला का ख़ून पीती थी वह जड़ जो कि पत्थर थी स्वयं सीढियां थी बादलों की झूलती टहनियों-सी और वह पक्का
अनुवाद की भाषा अनुवाद की भाषा से अच्छी क्या भाषा हो सकती है वही है एक सफ़ेद परदा जिस पर मैल की तरह दिखती है
दोस्तो ये दो कविताएं 1991 की हैं और इनका कच्चापन साफ दिखाई देता है- आप इन्हें मेरी निजी और पुरानी डायरी के दो पीले पन्ने