कुमार अम्बुज
कुमार अम्बुज हमारे समय के महत्वपूर्ण कवियों में एक हैं। मेरे लिए वे ऐसे अनदेखे-अनमिले-अपरिचित बड़े भाई हैं, जिनकी कविता की मैंने हमेशा ही कद्र
कुमार अम्बुज हमारे समय के महत्वपूर्ण कवियों में एक हैं। मेरे लिए वे ऐसे अनदेखे-अनमिले-अपरिचित बड़े भाई हैं, जिनकी कविता की मैंने हमेशा ही कद्र
अगर तुम्हें नींद नहीं आ रही अगर तुम्हें नींद नहीं आ रही तो मत करो कुछ ऐसा कि जो किसी तरह सोये हैं उनकी नींद
विमल कुमार, मेरा अनुमान है कि कुमार अम्बुज और देवीप्रसाद मिश्र की पीढ़ी के कवि हैं। मैं उन्हें उनके संकलन `सपने में एक औरत से
किरीट मेरे लिए व्यक्ति से ज़्यादा एक व्यक्तित्व हैं। उन्हें अपने अनुभव अभी प्राप्त करने हैं। वे अपने पहाड़ी गांव से नस-नाल आबद्ध हैं और
दोस्तों के डेरे पर एक शाम – एक बहुत कुछ नहीं रहा जब बाक़ीहमारे जीवन मेंहमने टटोली अपनी आत्मा जैसे आटे का ख़ाली कनस्तरजैसे घी
पुराने उम्रदराज़ दरख्तों से छिटकती छालें कब्र पर उगी ताज़ा घास पर गिरती हैं अतीत चौकड़ी भरते घायल हिरन की तरह मुझमें से होते भविष्य
एक अद्वितीय तत्व हमें नरेश सक्सेना की कविता में दिखाई पड़ता है जो शायद समस्त भारतीय कविता में दुर्लभ है और वह है मानव और
एक फूल सभी जब नींद में गुम है , महके अब पुरवाई क्या इतने दिनों में याद जो तेरी, आई भी तो आई क्या मैं
बिवाई पड़े पांवों में चमरौंधा जूता , मैली – सी धोती और मैला ही कुरता , हल की मूठ थाम -थाम सख्त और खुरदुरे पड़
(जीवन स्थितियों का इतना गहरा अवसाद, रचना के अनुभव में निहित तनाव की इतनी आवेगपूर्ण लय, इतना ताजगी भरा चाक्षुक बिंब विधान और पैराबल्स, काव्यात्मक