तसला
वह मुझे धरती की तरह लगता हैजिसे उठाएइतने सधे कदमों से चढ़ती-चली जाती हैं बांस के टट्टरों परकुछ सांवली और उदास औरतें उसमें क्या नहीं
वह मुझे धरती की तरह लगता हैजिसे उठाएइतने सधे कदमों से चढ़ती-चली जाती हैं बांस के टट्टरों परकुछ सांवली और उदास औरतें उसमें क्या नहीं
ये छोटी सी कविता २००६ में आउटलुक में छपी थी और उस समय कुछ दोस्तों ने इसे पसंद भी किया था ! अब ये एक
( अप्रैल २००७ में मुझ पर एक आफ़त आई और मैंने बदहवासी की हालत में ख़ुद को एम० आर० आई० मशीन में पाया। उस जलती
1 अगस्त 1944 को पिपरिया, म0प्र0 में जन्मे गिरधर राठी अस्सी के दशक में हिंदी के सम्मानित कवि माने जाते रहे हैं। उनके आलोचक भी
शर्मनाक समय कैसा शर्मनाक समय है जीवित मित्र मिलता है तो उससे ज़्यादा उसकी स्मृति उपस्थित रहती है और उस स्मृति के प्रति बची खुची
मैंने जाना उसका लौटनावह जो हमारे मुहल्ले की सबसे खूबसूरत लड़की थीअब लौट आयी है हमेशा के लिएशादी के तीन साल बाद वापसहमारे ही मुहल्ले
चारबाग़ स्टेशन : प्लेटफारम नं. 7 ‘तुम झूटे ओ’ यही कह रही बार-बार प्लेटफारम की वह बावली ‘शुद्ध पेयजल’ के नलके से एक अदॄश्य बर्तन
पसीने कीएक आदिम गंध आती है मुझसेएक पाषाणकालीन गुफा मेंखुदा मिलता हैमेरा चेहरा हज़ारों साल पुरानेकैल्शियम और फास्फोरस कासंग्रहालय बन जाती हैंमेरी अस्थियांभाषा के कुछ
(इस कविता को वेणुगोपाल के लिए भी मेरी एक श्रद्धांजलि मानें , जो कुमार विकल के समानधर्मा कवि थे।) सभी कुछ रंगीन था जब तुम
( हमारे कबाड़खाने से ये फोटो, उनकी, जिन्हें ये कविता संबोधित है …. इसे विश्व पुस्तक मेले में खेंचा गया ) जब से तुम्हारी दाढ़ी