इक्कीसवीं सदी का छंदज्ञान यानी वीरेन डंगवाल की अलग तान !
एक ज़िद्दी धुन ने अपनी टिप्पणी में मुझे वीरेन दा की याद दिलाई और यहाँ मैं लाया हूँ उनकी दो कविताएँ, जिनमें से दूसरी की
एक ज़िद्दी धुन ने अपनी टिप्पणी में मुझे वीरेन दा की याद दिलाई और यहाँ मैं लाया हूँ उनकी दो कविताएँ, जिनमें से दूसरी की
अपने पिता की बरसी परमैं गयाउनके साथियों को देखनेजो दफ़नाए गए थे उन्हीं के साथ एक क़तार मेंयही थीउनके जीवन की स्नातक कक्षा मुझे याद
विश्वकविता में अपना एक विशिष्ट स्थान रखने वाले स्वीडिश कवि टॉमस ट्रांसट्रॉमर का जन्म 15 अप्रैल 1931 को हुआ। उनका बचपन अपनी के मां के
कुछ भीपकड़ में नहीं आ रहा है इधर घटनाओं को पकड़ नहीं पा रहा हैदिमाग़ हालांकि मिल रही हैंउनके घटने की सूचनाएं भरपूर दृश्यों को
( ये पोस्ट अग्रज कवि कुमार अम्बुज के लिए बतौरे ख़ास … ) जब आदमी उम्रदराज़ हो जाता हैतो उसका जीवनमुक्त हो जाता है समय
आशुतोष दुबे की ये कविताएँ उनके संकलन “यकीन की आयतें” से ली गई हैं और इन्हें हमारे चित्रकार दोस्त श्री रविन्द्र व्यास ने अत्यन्त प्रीतिपूर्वक
मित्रो अगस्त के महीने में कुछ दिन के लिए अपने पहाड़ गया तो कई बरस बाद “हल” देखने और छूने का मौका मिला। मौसम नहीं
नामवर जी के भारतभूषण कविता पुरस्कार के निर्णायक होने की एक अप्रतिम खोज हैं 1987 में पुरस्कृत मेरे प्रिय अग्रज कवि देवीप्रसाद मिश्र। देवी भाई
कबाड़खाने से शुरू हुए येहूदा आमीखाई की कविताओं के क्रम को अनुनाद में भी जारी रख रहा हूं। आगे कुछ उनकी लम्बी `युद्ध श्रंखला´ से
बहुत काली थी रात हवाएं बहुत तेज़ बहुत कम चीज़ें थीं हमारे पासरोशनी बहुत थोड़ी-सीथोड़ी-सी कविताएँऔर होशउनसे भी थोड़ा हम किसी चक्रवात में फंसकरलौटे थेदेख