रात में शहर
दिन की सबसे ज़्यादा हलचल वाली जगहें हीसबसे ज़्यादा खामोश हैं अब चौराहे पर अलाव जलायेपान की दुकान के बन्द होते
दिन की सबसे ज़्यादा हलचल वाली जगहें हीसबसे ज़्यादा खामोश हैं अब चौराहे पर अलाव जलायेपान की दुकान के बन्द होते
स्मृति में रहना स्मृति में रहना नींद में रहना हुआ जैसे नदी में पत्थर का रहना हुआ ज़रूर लम्बी धुन की
( ऊपर कवि नीचे अनुवादक ) नए साल की क़समें क़सम खाता हूं दारू और सिगरेट नहीं छोड़ूंगा क़सम खाता हूं
आज से 74 वर्ष पूर्व तेहरान में एक मध्यवर्गीय परिवार में जन्मी फ़रोग इरानी स्त्रीवादी कविता की अगवा मानी जाती हैं।
“जिन कवियों की बदौलत आज की हिंदी कविता का संसार नया और बदला-बदला लग रहा है, उनमें नरेश चंद्रकर अग्रणी हैं”
(…..अभी मैंने तुषार के कविता संकलन से सम्बंधित पोस्ट लगाई थी। आज मेल में गीत, अनुराग, गिरिराज, व्योमेश आदि दोस्तों को
अनुनाद पर अभी आपने समकालीन कविता को लेकर पंकज का एक लम्बा सैद्धान्तिक लेख पढ़ा है। अपने समय और पूर्वस्थापित सिद्धान्तों
(चित्र राजकमल द्वारा प्रकाशित ‘प्रतिनिधि कविताएँ’ से साभार) कोई छींकता तक नहीं इस डर से कि मगध की शांति भंग न
वरवर राव विख्यात तेलगू कवि हैं। उनका संकलन हिंदी में भी उपलब्ध है। वसन्त के क्रम को आगे बढ़ाती हुई उनकी
सिद्धेश्वर सिंह कविता के एक खामोश और संकोची किंतु अत्यन्त समर्थ कार्यकर्ता हैं। अपनी कविताओं के जिक्र को वे हमेशा टालते