येहूदा आमीखाई
समुद्र तट पर निशाँ जो रेत पर मिलते थे मिट गएउन्हें बनाने वाले भी मिट गए अपने न होने की हवा
समुद्र तट पर निशाँ जो रेत पर मिलते थे मिट गएउन्हें बनाने वाले भी मिट गए अपने न होने की हवा
इस बार वाया मंगलेश डबराल स्त्रेस्नाय चौराहा स्त्रेस्नाय चौराहे का गिरिजाघर बजाता है चार का गजरहालांकि चौराहा और गिरिजाघर बहुत पहले
ये कवितायेँ भीं वाया वीरेन डंगवाल ……. रूबाईयात १जो दुनिया तुमने देखी रूमी, वो असल न थी, न कोई छाया वगैरहयह
ये अनुवाद किये है हमारे समय के सबसे बेचैन कवि वीरेन डंगवाल ने ……… तर्क घोड़ी के सिर जैसे आकार वाला
फोटो: हिंदी समय डाट काम से साभार नदियां इछामती और मेघना महानंदा रावी और झेलम गंगा गोदावरी नर्मदा और घाघरा नाम
कल मैंने वीरेन डंगवाल की एक कविता पोस्ट की थी जिसे बडे भाई आशुतोष जी ने सराहा। आज उसी क्रम में
वीरेन डंगवाल मेरे पसंदीदा कवि हैं। उनकी “नागपुर के रस्ते ” यहां पेश है। मेरी पैदायिश भी इसी शहर की है,
आलोक धन्वा की छोटी कविताएं मुझे आलोक धन्वा को पढना हमेशा ही अच्छा लगता है। उनकी लम्बी कवितायेँ हमेशा चर्चा के
चंद्रकांत देवताले हिंदी के उन कवियों में प्रमुख हैं जिन्होंने भारतीय स्त्रियों के संसार को बिना किसी विमर्श विशेष के अपनी
येहूदा आमीखाई की कवितायेँ बम का व्यास तीस सेंटीमीटर था बम का व्यास और इसका प्रभाव पडता था सात मीटर तक