बोधिसत्व
बोधिसत्व की ये कविता उनके पहले संकलन से है और आप देख सकते हैं कि वैश्विक स्तर पर आज कितनी प्रासंगिक
बोधिसत्व की ये कविता उनके पहले संकलन से है और आप देख सकते हैं कि वैश्विक स्तर पर आज कितनी प्रासंगिक
सबसे पहले ये कविता कबाड़खाना पर अशोक ने लगाई। मैंने इसे पढ़ा और फिर जगूड़ी जी से फोन पर बात हुई।
अधबना स्वर्ग हताशा और वेदना स्थगित कर देती हैं अपने -अपने काम गिद्ध स्थगित कर देते हैं अपनी उड़ान अधीर और
आंखों की उदासी और एक सफ़र की तफसील एक अँधेरी याद है जिस पर चीनी के बुरे की तरह बिखरा हुआ
ये स्मृति है एक अंकुर की जिसे बड़ा पेड बनना था लेकिन अब उसके अंकुराने के कुछ प्रमाण ही शेष हैं।
खुशीवह नहीं चाहतीकि मैं उसके बारे में कुछ बोलूंउसे कागज पर नहीं उतारा जा सकेगाऔर न हीउसके बारे में कोई भविष्यवाणी
अब बच्चा अब बच्चाकुछ देख रहा हैकुछ सुन रहा है कुछ सोच रहा है क्या वह देख रहा हैउस तरह की
ईश्वर से मुखामुखी मेरी चमकती आंखों से दूसरी पर भाग जाने कि आतुरता छीन कर उन्हें सिखालाओ पर्दा करना उन चमकीली
स्मृतियां मुझ पर निगाह रखती हैंजून की एक सुबह यह बहुत जल्दी है जागने के लिए और दुबारा सो जाने के
प्रेम की स्मृतियाँ १ – छवि हम कल्पना नहीं कर सकते कि कैसे हम जियेंगे एक दूसरे के बिना ऐसा हमने