अनुनाद

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एक दिन मैं मारा जाऊंगा

एक दिन मैं मारा जाऊंगामरना नहीं चाहूंगा पर कोई चाकू घुस जाएगा चुपचाप मेरी टूटी और कमज़ोर बांयीं पसली के भीतर उसी प्यारभरे दिल को

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एक मध्यप्रदेशीय सामन्ती क़स्बे के आकाश पर…

यह कविता पहली बार यहाँ प्रकाशित हुई चित्रकृति : शिवकुमार गांधी(प्रतिलिपि से साभार) वहाँ फ़िलहाल कुछ लड़कियों के कपड़े टंगे हैं सूखने को और सपने

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