फिलीस्तीनी-अमरीकी कवि सुहीर हम्माद की कविता – तीसरी किस्त / चयन, अनुवाद तथा प्रस्तुति : यादवेंद्र
क्या करूंगी मैं(अरब देशों को युद्ध की आग में झोंकते अमरीकी प्रशासन को सम्बोधित) मैं थिरकूंगी नहीं तुम्हारी रणभेरी परमैं अपनी अंतरात्मा भी नहीं करूंगी
क्या करूंगी मैं(अरब देशों को युद्ध की आग में झोंकते अमरीकी प्रशासन को सम्बोधित) मैं थिरकूंगी नहीं तुम्हारी रणभेरी परमैं अपनी अंतरात्मा भी नहीं करूंगी
हादसे के बाद पहले शब्द(11 सितम्बर 2001 के वल्र्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले के तत्काल बाद लिखी लम्बी कविता के चुनिन्दा अंश) कोई शब्द
जार्डन के एक शरणार्थी शिविर में 1973 में जन्मी सुहीर हम्माद अपने बचपन का कुछ समय बेरूत में फिलीस्तीनी सिविल वॉर की छाया में गुज़ारने
(गीत युवा पीढी की एक बहुत बड़ी सम्भावना और महत्वाकांक्षा हैं। उनसे उम्मीदें बहुत ऊंची हैं और इस ऊँचाई को पाने का रचनात्मक साहस और
आज के सबसे सुखद समाचार की तरह पंकज जी की ये दो कविताएं मिलीं। बच्चे के लिए उन्होंने जो कुछ लिखा, वो दुनिया भर के
व्योमेश शुक्ल की यह प्रश्नोत्तरी सापेक्ष के आलोचना महाविशेषांक से – दूसरी तथा अन्तिम किस्त आपकी नज़र में समकालीन लेखन की बुनियादी पहचान क्या हो
व्योमेश शुक्ल की यह प्रश्नोत्तरी सापेक्ष के आलोचना महाविशेषांक से – पहली किस्त अपनी रचना-प्रक्रिया पर प्रकाश डालिए। आलोचना में रुचि क्यों और कैसे हुई?
दिन की सबसे ज़्यादा हलचल वाली जगहें हीसबसे ज़्यादा खामोश हैं अब चौराहे पर अलाव जलायेपान की दुकान के बन्द होते समय नियम से सुरक्षा
स्मृति में रहना स्मृति में रहना नींद में रहना हुआ जैसे नदी में पत्थर का रहना हुआ ज़रूर लम्बी धुन की कोई बारिश थी याद
( ऊपर कवि नीचे अनुवादक ) नए साल की क़समें क़सम खाता हूं दारू और सिगरेट नहीं छोड़ूंगा क़सम खाता हूं जिनसे मैं नफ़रत करता