उर्दू हिन्दू और अन्य कविताएँ : नरेश चन्द्रकर
“जिन कवियों की बदौलत आज की हिंदी कविता का संसार नया और बदला-बदला लग रहा है, उनमें नरेश चंद्रकर अग्रणी हैं” – वरिष्ठ कवि अरुण
“जिन कवियों की बदौलत आज की हिंदी कविता का संसार नया और बदला-बदला लग रहा है, उनमें नरेश चंद्रकर अग्रणी हैं” – वरिष्ठ कवि अरुण
(…..अभी मैंने तुषार के कविता संकलन से सम्बंधित पोस्ट लगाई थी। आज मेल में गीत, अनुराग, गिरिराज, व्योमेश आदि दोस्तों को सम्मिलित रूप से भेजी
अनुनाद पर अभी आपने समकालीन कविता को लेकर पंकज का एक लम्बा सैद्धान्तिक लेख पढ़ा है। अपने समय और पूर्वस्थापित सिद्धान्तों की गहन छानबीन करते
(चित्र राजकमल द्वारा प्रकाशित ‘प्रतिनिधि कविताएँ’ से साभार) कोई छींकता तक नहीं इस डर से कि मगध की शांति भंग न हो जाए मगध को
वरवर राव विख्यात तेलगू कवि हैं। उनका संकलन हिंदी में भी उपलब्ध है। वसन्त के क्रम को आगे बढ़ाती हुई उनकी यह कविता पहल-47 से
सिद्धेश्वर सिंह कविता के एक खामोश और संकोची किंतु अत्यन्त समर्थ कार्यकर्ता हैं। अपनी कविताओं के जिक्र को वे हमेशा टालते आए हैं इसलिए इस
अरुण आदित्य 1965 में प्रतापगढ़ में जन्म हुआ़। कविता-संग्रह ‘रोज ही होता था यह सब’ 1995 में प्रकाशित। इसी संग्रह के लिए मध्यप्रदेश साहित्य परिषद
नीचे तस्वीर में है भोपाल की विख्यात ताजुल मस्जिद यह एक पुरानी स्मृति है। इसे 2005 के शुरू में रायपुर से निकलने वाली देशबंधु समूह
मित्रो !सबद पे गीत चतुर्वेदी की डायरी के अंश प्रकाशित हुए हैं जिनमें उन्होंने कुछ ऐसी चीज़ों के बारे में बात की है जो हम
लाल्टू को मैं उनके पहले संग्रह `एक झील थी बर्फ़ की´ से जानता हूं। मुझे वे कविताएं अच्छी लगीं और इधर नेट पर उनका दूसरा