अनुनाद

कविता

ये सच है कि अपना कागज़ और अपनी रौशनाई खुद गढ़नी होती है सबको – सपना भट्ट

यहीं तो था  यहीं तो था अज्ञात कूट संकेतों के  अप्रचलित उच्चारणों में गूँजता  तुम्हारी मौलिक हँसी का मन्द्र अनुनाद यहीं

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जब चैत के महीने में मेरे आँगन की फ्योली खिलेगी मैं सो जाऊॅंगी और तुम सोचोगे मैं मुस्करा रही हूँ – दीपिका ध्‍यानी घिल्‍डियाल

(1) खुरदुरे हाथों वाली पहाड़ी लड़कियां गर्भ में सीख जाती हैं, कितनी कसकर थामनी है दरांती किस गोलाई में समेटनी है

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