अनुनाद

कविता

जब चैत के महीने में मेरे आँगन की फ्योली खिलेगी मैं सो जाऊॅंगी और तुम सोचोगे मैं मुस्करा रही हूँ – दीपिका ध्‍यानी घिल्‍डियाल

(1) खुरदुरे हाथों वाली पहाड़ी लड़कियां गर्भ में सीख जाती हैं, कितनी कसकर थामनी है दरांती किस गोलाई में समेटनी है

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उलटबांसियों से पगा है यह क्षणिक जीवन/मंजुला बिष्‍ट

   सखी-संवाद     एक सधन्यवाद पत्र सखी!जितना समझी हूँ अब तलकसंसार में सुख-दुःख की आदी परम्परा रही है,सुख अपने भीतर गिरकर उन्मादी होते

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