मिलती रही मंज़िलों की खबर ग़म-ए- दौराँ की उदासियों से भी/शुभा द्विवेदी की कविताएं
कुछ सीखें बच्चों की बड़ों के लिए कितना कुछ बचा लेते हैं ये नन्हे-नन्हे हाथ: धरती भर मानवता
कुछ सीखें बच्चों की बड़ों के लिए कितना कुछ बचा लेते हैं ये नन्हे-नन्हे हाथ: धरती भर मानवता
आश्वस्ति बसंत के माथे पर खिलते फूलों को देख लौट लौट आती हैं तितलियाँ जबकि पूस की रातों में
आरती के पश्चात घाट पर हमारे बैठे-बैठे गंगा से डाल्फिनें ग़ायब हो गईं गुम हो गई उस पार की हरियाली
पिता वे सिर्फ एक छत ही नहीं,पेपरवेट भी थे.जैसे ही हटे,हमकागज के पन्नों-सेबिखरते चले गए.*** यथार्थ जब मैं स्वयं कोसम्पूर्ण
नदियां और बेटियां (19 वर्षीय हिमानी, एक सुदूर पहाड़ी ग्रामीण इलाके से आयी लड़की, जो स्नातक के लिए महिला महाविद्यालय हल्द्वानी
फिलीस्तीनी मूल के माता पिता की संतान लोहाब आसेफ अल जुंदी का जन्म सीरिया में हुआ। अमेरिका में इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद वहीं
जमैका से आकर अमेरिका में बस जाने वाली 52 वर्षीय अश्वेत ऐक्टिविस्ट कवि क्लॉडिया रैंकिन की पिछले साल पाँचवी किताब आई है “सिटीजन : ऐन अमेरिकन लीरिक” जिसे न सिर्फ़
धानरोपनी दिल नहीं लगा आज उसका धानरोपनी के गीतों में बबुआ की देह तप रही थी आते समय ज्वर
धूप में धूप दूर दृष्टि के दूसरे छोर तक पसरी है, आग का एक समुद्र उग आया