अभी फिलहाल वे पर्वतीय जीवन की दुश्वारियों पर बात कर रहे हैं / भूपेन्द्र बिष्ट की कविताएं
राज़ हो कितना गहरा प्रेम में प्रतीक्षा से पाला पड़ता रहता है प्रेम के साथ एक प्रकाश भी नत्थी होता है
राज़ हो कितना गहरा प्रेम में प्रतीक्षा से पाला पड़ता रहता है प्रेम के साथ एक प्रकाश भी नत्थी होता है
रेख़्ता फाउन्डेशन हिन्दवी और महादेवी वर्मा सृजन पीठ, कुमाऊँ विश्वविद्यालय नैनीताल के सहयोग से आयोजित कैंपस कविता कार्यक्रम (06 जून
स्मार्ट सिटी की होड़ में स्मार्ट सिटी की होड़ में स्मार्टनेस की अंधी
छद्म रात की स्याही में चाँद चंद्रबिंदु के समान चमक रहा था अनगिनत तारे अनंत आकाश ज़मीं पर दूर
सेमल का फूल चैत के महीने में बिखरे घमाते सेमल के फूल अलसाये उनींदे फिर भी
बौज्यू कब से कह रहे थे कि गांव ले चलो ले चलो गांव बस एक बार इसे मेरी आखिरी बार
नदी का पानी (अरुण कमल के लिए ) पहाड़ से गिरता हुआ पानी नहीं जानता कि उसे जाना कहाँ है वह
कुछ सीखें बच्चों की बड़ों के लिए कितना कुछ बचा लेते हैं ये नन्हे-नन्हे हाथ: धरती भर मानवता
आश्वस्ति बसंत के माथे पर खिलते फूलों को देख लौट लौट आती हैं तितलियाँ जबकि पूस की रातों में