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कविता
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सबको अपने हिस्से की धूप चाहिए/ कौशलेन्द्र की कविताएं
छद्म रात की स्याही में चाँद चंद्रबिंदु के समान चमक रहा था अनगिनत तारे अनंत आकाश ज़मीं पर दूर
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सफेद धुआं बन जाने से पहले, वह जी लेना चाहता हो हर रंग/ रंजना जायसवाल की कविताऍं
सेमल का फूल चैत के महीने में बिखरे घमाते सेमल के फूल अलसाये उनींदे फिर भी
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फिलहाल तो उसके हाथों में लग गया है सिसौंण/हरि मृदुल की कविताएं
बौज्यू कब से कह रहे थे कि गांव ले चलो ले चलो गांव बस एक बार इसे मेरी आखिरी बार
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एक कवि और करता क्या है दरार की नमी बनने के आलावा/शंकरानंद की कविताएं
नदी का पानी (अरुण कमल के लिए ) पहाड़ से गिरता हुआ पानी नहीं जानता कि उसे जाना कहाँ है वह
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मिलती रही मंज़िलों की खबर ग़म-ए- दौराँ की उदासियों से भी/शुभा द्विवेदी की कविताएं
कुछ सीखें बच्चों की बड़ों के लिए कितना कुछ बचा लेते हैं ये नन्हे-नन्हे हाथ: धरती भर मानवता
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डाली पर झुका गुलाब तुम्हारी स्मृति में खिला है/ सीमा सिंह की कविताएं
आश्वस्ति बसंत के माथे पर खिलते फूलों को देख लौट लौट आती हैं तितलियाँ जबकि पूस की रातों में
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बनारस पर कविताएं / केशव शरण की कविताएं
आरती के पश्चात घाट पर हमारे बैठे-बैठे गंगा से डाल्फिनें ग़ायब हो गईं गुम हो गई उस पार की हरियाली
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हर्षिल पाटीदार की कविताएं
पिता वे सिर्फ एक छत ही नहीं,पेपरवेट भी थे.जैसे ही हटे,हमकागज के पन्नों-सेबिखरते चले गए.*** यथार्थ जब मैं स्वयं कोसम्पूर्ण