समकालीन कविता के कोनों और हाशियों की ओर ध्यान खींचती आलोचना – महेश चंद्र पुनेठा
आज की आलोचना विशेषकर व्यवहारिक आलोचना का एक बड़ा संकट है-उसे न पढ़े जाने का।विडंबना यह है कि इसका कारण
आज की आलोचना विशेषकर व्यवहारिक आलोचना का एक बड़ा संकट है-उसे न पढ़े जाने का।विडंबना यह है कि इसका कारण
It is midnight I keep awake, all by myself To see the midnight colors, they Have silent is vibrant and Rhythm
स्वानुभूति- हिन्दी दलित आत्मकथाओं में जो एक महत्वपूर्ण तथ्य सामने आता है वो है इन आत्मकथाओं में स्वानुभूति तथा
गिरिाराज किराड़ू ने इस बार न सिर्फ़ अपने बल्कि मेरी समझ के भी बहुत क़रीब के कवि महेश वर्मा पर लिखा
बेहद सतर्क एवं चौकन्नी दृष्टि की कविताएं
अनुनाद पर सुप्रसिद्ध कवि गिरिराज किराड़ू के महत्वपूर्ण स्तम्भ ‘कविता जो साथ रहती है’ के तहत इस बार प्रस्तुत है असद
भीतर-बाहर की आवाजाही पिछले दिनों युवा कवि अमित श्रीवास्तव का पहला कविता संग्रह’बाहर मैं …मैं अन्दर ‘ शीर्षक से प्रकाशित हुआ
फेसबुक पर आज संयोगवश अग्रज कवि पवन करण की दीवाल पर प्रख्यात कथाकार महेश कटारे का यह चकित कर देने वाला
विस्थापन और ‘आत्म’बोध की दूसरी कथा अपनों में नहीं रह पाने का गीत उन्होंने मुझे इतना सताया कि मैं उनकी दुनिया