साहित्य-सरोवर और यक्ष -युधिष्ठिर संवाद : पंकज मिश्र
यक्ष -युधिष्ठिर संवाद हमने पहले भी अनुनाद पर साझा किए थे, जिन्हें आप यहां पढ़ सकते हैं। उसी क्रम में यह
यक्ष -युधिष्ठिर संवाद हमने पहले भी अनुनाद पर साझा किए थे, जिन्हें आप यहां पढ़ सकते हैं। उसी क्रम में यह
पूर्वकथन- अँधेरी आधी रात का पीछा करती गहरी घनेरी नींद | नींद में मैं, सपना और दादाजी | दादा जी सपनों
हिंदी की कथा और कविता,दोनों में, प्रेमपत्र बहुत दिव्य किस्म की भावुकता का शिकार पद है। कहना न होगा कि प्रेमपत्र
“नाम है-रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’। ज़िला सुल्तानपुर के मूल निवासी। नाटा कद, दुबली काठी, सांवला रंग, उम्र लगभग 50 के आसपास, चेहरा
परिवर्तन की गहरी उम्मीद से भरा हुआ कवि हर बड़े कवि में ऐसी कुछ खासियतें होती हैं, जो उस कवि
वीरेन डंगवाल पर उनके आत्मीय मित्र कथाकार बटरोही की लम्बी टिप्पणी मैं फेसबुक से साभार ले रहा हूं। बटरोही से वीरेन
1०वाँ विश्व हिंदी सम्मलेन का आयोजन 10-12 सितम्बर 2015 को मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में संपन्न हुआ वैश्विक
“जब होवेगी उम्र पुरी, तब टूटेगी हुकुम हुजूरी, यम के दूत बड़े मरदूद, यम से पडा झमेला” (पंडित स्व कुमार गन्धर्व
‘कविता लिखने के लिए कवि होना ज़रूरी नहीं। ’ ये ब्रह्म वाक्य मुझे एक ‘कविता: कल, आज, कल और परसों’ नामक
हमारे वक़्त के ये यक्ष-युधिष्ठिर संवाद, जिन्हें इन्हीं में से चुराकर मैंने ऊपर एक शीर्षक दे दिया है। यक्ष पूछता है