अनुनाद

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हल

मित्रो अगस्त के महीने में कुछ दिन के लिए अपने पहाड़ गया तो कई बरस बाद “हल” देखने और छूने का मौका मिला। मौसम नहीं

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नगर की एक मां भी हो, यह किसी ने नहीं सोचा – देवीप्रसाद मिश्र

नामवर जी के भारतभूषण कविता पुरस्कार के निर्णायक होने की एक अप्रतिम खोज हैं 1987 में पुरस्कृत मेरे प्रिय अग्रज कवि देवीप्रसाद मिश्र। देवी भाई

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मोमबत्ती की रोशनी में कवितापाठ – वीरेन दा के साथ

बहुत काली थी रात हवाएं बहुत तेज़ बहुत कम चीज़ें थीं हमारे पासरोशनी बहुत थोड़ी-सीथोड़ी-सी कविताएँऔर होशउनसे भी थोड़ा हम किसी चक्रवात में फंसकरलौटे थेदेख

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व्योमेश शुक्ल की कविताएँ

व्योमेश की कविताएं अपनी तरह से समकालीन कविता में एक नए युग की शुरूआत का विनम्र घोषणा-पत्र हैं। ऊपरी तौर पर ऐसा लगता है कि

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तसला

वह मुझे धरती की तरह लगता हैजिसे उठाएइतने सधे कदमों से चढ़ती-चली जाती हैं बांस के टट्टरों परकुछ सांवली और उदास औरतें उसमें क्या नहीं

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जड़ी-बूटियों का गीत

ये छोटी सी कविता २००६ में आउटलुक में छपी थी और उस समय कुछ दोस्तों ने इसे पसंद भी किया था ! अब ये एक

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मनमोहन की कविताएँ

शर्मनाक समय कैसा शर्मनाक समय है जीवित मित्र मिलता है तो उससे ज़्यादा उसकी स्मृति उपस्थित रहती है और उस स्मृति के प्रति बची खुची

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