अनुनाद

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अनिल कार्की की नई कविताएं

अनिल की आंचलिकता से भ्रमित मत होइए, वह अपनी कविताओं के जाहिर दिख रहे स्थानीय आख्यानों में हमारे जीवन और वैचारिकी के महाख्यान छुपा देता

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नयार की लहरों का लेखा-जोखा ‘मल्यो की डार’ – अनिल कार्की

गीता गैरोला की संस्मरण पुस्तक की समीक्षा           मैं याद को केवल जगह (स्पेस) नहीं मानता और न वर्तमान से पलायन की शरणस्थली। मैं स्मृति

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एक अनाम समस्या : बेट्टी फ्रीडन- अनुवाद : सुबोध शुक्ल

सुबोध शुक्ल सुपरिचित आलोचक हैं। उनका लेखन हिंदी के इलाक़े में एक नई उम्मीद की तरह है। हमारे अनुरोध पर उन्होंने बेट्टी फ्रीडन के एक महत्वपूर्ण लेख

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कविता की उम्मीदों का लालिमा भरा चेहरा – अनिल कार्की के कविता संग्रह ‘उदास बखतों का रमोलिया’ पर महेश चंद्र पुनेठा का लेख

अनिल कार्की संभावनाओं का एक नाम है और महेश पुनेठा सुपरिचित कवि-समीक्षक। महेश पुनेठा का अनिल के संग्रह पर लिखना सुखद है। महेश और अनिल,

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जुगलबंदी: लीलाधर जगूड़ी की लम्बी कविता “बलदेव खटिक” एवं वीरेन डंगवाल की बहुचर्चित कविता “रामसिंह’ को साथ-साथ पढ़ते हुए – पृथ्वीराज सिंह

पृथ्वीराज सिंह को सोशल मीडिया पर मैंने कविता पर उनकी कुछ सधी हुई टिप्पणियों से जाना। कविता की उनकी पढ़त और समझ अब एक रचनात्मक

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प्रेमपत्र – नवीन रमण

हिंदी की कथा और कविता,दोनों में, प्रेमपत्र बहुत दिव्य किस्म की भावुकता का शिकार पद है। कहना न होगा कि प्रेमपत्र कहते ही किस कविता

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असंग घोष की कविताएं

गहरे आक्रोश में डूबी ये कविताएं, कविता होने के पारम्परिक विधान को भी मुंह चिढ़ाती हैं। इनके कथ्य पर बहस हो और क्राफ़्ट पर भी

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वो तकनीक के साए में ज्ञान से ठगे गए उर्फ़ नब्बे के दशक के लौंडे – अमित श्रीवास्तव की नई कविता

‘वो तकनीक के साए में ज्ञान से ठगे गए’ – नब्बे के दशक लौंडे शीर्षक इस कविता के कुछ रेखांकित किए जाने योग्य उद्बोधनों में

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