
ऋष्यशृङ्ग की ख़राब कविताएँ की ख़राब भूमिका- अम्बुज कुमार पाण्डेय
कवियों का दुःख संसार का कठोरतम जीव मुझे कवि समझ में आता है। देसी भाषा में कहूँ तो बिलकुल ‘कठ करेज’। और हो भी क्यों
कवियों का दुःख संसार का कठोरतम जीव मुझे कवि समझ में आता है। देसी भाषा में कहूँ तो बिलकुल ‘कठ करेज’। और हो भी क्यों
मेधा- हिन्दी साहित्य और न्यू मीडिया के संबंध को आप किस तरह देखते हैं? कमलजीत – मेरी समझ से इस दौर में हिन्दी साहित्य और
एक आँख कौंधती है (स्त्री केन्द्रित कविताएँ) । विनोद पदरज । प्रथम संस्करण : पेपरबैक, 2024 । पृष्ठ : 150 । मूल्य : 200/- विनोद
यहीं तो था यहीं तो था अज्ञात कूट संकेतों के अप्रचलित उच्चारणों में गूँजता तुम्हारी मौलिक हँसी का मन्द्र अनुनाद यहीं रखे थे प्रागैतिहासिक अविष्कारों
(1) ये एक-एक स्त्री संपूर्ण धरती है पूरा गाँव हैं कीकर का फूलों से लदा पेड़ हैं इन्हीं की किसी झुकी कमर में मेरी नानी
बोधिवृक्ष जब मैंने स्त्री को जाना जैसे छूकर मिट्टी को जाना जैसे छूकर जल को जाना जैसे छूकर अग्नि को जाना स्त्री तुम हो बोधि
(1) खुरदुरे हाथों वाली पहाड़ी लड़कियां गर्भ में सीख जाती हैं, कितनी कसकर थामनी है दरांती किस गोलाई में समेटनी है हथेली ताकि काटी जा
(1) चंद लम्हों का प्यार का मौसम फिर वही इंतज़ार का मौसम एक मौसम वफ़ा का फूलों का इक जफ़ाओं का ख़ार का मौसम
हमारी देह की गन्ध अलग थी हमारा पसीना अलग था नाक अलग थी क्या था हम घुटनों पर बैठ सकते थे हाँ हमने जांघो
विजयदेव नारायण साही का यह जन्म शताब्दी वर्ष है। वह मूलतः कवि थे। यह अलग बात है कि वह हिंदी आलोचना में एक प्रखर आलोचक,