
प्रेम के अभ्यास में मैं आकाश से खींच लाई इंद्रधनुष – कंचनलता जायसवाल
बोधिवृक्ष जब मैंने स्त्री को जाना जैसे छूकर मिट्टी को जाना जैसे छूकर जल को जाना जैसे छूकर अग्नि को जाना स्त्री तुम हो बोधि
बोधिवृक्ष जब मैंने स्त्री को जाना जैसे छूकर मिट्टी को जाना जैसे छूकर जल को जाना जैसे छूकर अग्नि को जाना स्त्री तुम हो बोधि
(1) खुरदुरे हाथों वाली पहाड़ी लड़कियां गर्भ में सीख जाती हैं, कितनी कसकर थामनी है दरांती किस गोलाई में समेटनी है हथेली ताकि काटी जा
(1) चंद लम्हों का प्यार का मौसम फिर वही इंतज़ार का मौसम एक मौसम वफ़ा का फूलों का इक जफ़ाओं का ख़ार का मौसम
हमारी देह की गन्ध अलग थी हमारा पसीना अलग था नाक अलग थी क्या था हम घुटनों पर बैठ सकते थे हाँ हमने जांघो
विजयदेव नारायण साही का यह जन्म शताब्दी वर्ष है। वह मूलतः कवि थे। यह अलग बात है कि वह हिंदी आलोचना में एक प्रखर आलोचक,
उस रात हमारी माँ दुकान गई और वह वापस नहीं लौटी। क्या हुआ, मैं नहीं जानती। मेरे पिता भी एक दिन चले गये थे,
अहा एक था गाँव गाँव में थे लोग कुछ भले कुछ भोले अधिकांश गरीब और विपन्न लहलहाती थी फसलें गाँव सुंदर था
द्रुतगामी सड़क सड़क काली हो या भूरी जहां से भी निकलती है स्याह कर देती है इतिहास को और
ना ना ना। कोई महत्त्वाकांक्षा नहीं थी। कोई पुरस्कार की होड़ नहीं थी। ये कहानी है महाकवि पिंटा की, जो जम्मू में मामूली ट्रक चलाया