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बंशीधर षड़ंगी की कविता /अनुवाद – पारमिता षड़ंगी
शबरी चर्या -1 (१) राजा के महल में तेरा स्थान नहीं, शबरीवाली इतिहास के दुर्ग के

उलटबांसियों से पगा है यह क्षणिक जीवन/मंजुला बिष्ट
सखी-संवाद एक सधन्यवाद पत्र सखी!जितना समझी हूँ अब तलकसंसार में सुख-दुःख की आदी परम्परा रही है,सुख अपने भीतर गिरकर उन्मादी होते हैंतो,दूसरों के भीतर बरसकर

भैया मत पूछो अब आगे की कहानी /हरे प्रकाश उपाध्याय
कहे पत्रकार भोले शहर के सेठ का निकलता है अख़बार उसका नाम कितना प्यारा – जनता का समाचार सेठ जी का नाम बड़ा

तुम्हारे अंदर कौन खामोश बैठा कविता लिखता है/राकेश रोहित
मॉं की स्मृति में (1)दुख की लंबी उड़ान के बादकहाँ लौटती है आत्माएँकहाँ रीत जाता हैइच्छा के अक्षय पात्र में सिमटा

मैं चाहता हूँ मैं प्रेमिल रहूँ/केशव शरण
इतने पर भी मेरी एक आँखसपने देख रही हैदूसरी तारे गिन रही

हिन्दी साहित्य और न्यू मीडिया/ श्रीविलास सिंह से मेधा नैलवाल का साक्षात्कार
मेधा : हिंदी साहित्य और न्यू मीडिया के संबंध को आप किस तरह देखते हैं ? श्रीविलास सिंह : किसी भी साहित्य को पाठकों तक पहुँचने हेतु किसी

आशियाना/ पूजा गुप्ता
आनन-फानन में रामेश्वरी ने अपना सामान बांध लिया और चलने को तैयार भी हो गई। गुस्से की इन्तहा इतनी थी कि मुंह से ना एक

सदा से ही तमाम जीवनों के लिए अपना जीवन जीती रही है इजा/ गिरीश अधिकारी की कविताऍं
लेसू रोटियां उनदिनों जब इजाके पास मडुवा था औरमेरे पास थी एक जि़द कि गेहूँकी ही रोटी खानी है तबपदार्पण हुआ इन पहाड़ों में