
समय की विकृतियों का दस्तावेज़/ श्रीकृष्ण नीरज
बहुत ही कम समय में अपनी पहचान बनाने वाले कवि जावेद आलम खान अक्सर अपनी कविताओं में समय से सवाल करते हैं। यह विविध विद्रूपताओं
बहुत ही कम समय में अपनी पहचान बनाने वाले कवि जावेद आलम खान अक्सर अपनी कविताओं में समय से सवाल करते हैं। यह विविध विद्रूपताओं
हिंदी भारत ही नहीं विश्व की एक महत्वपूर्ण संवाद की भाषा है.एक भाषा के साथ यह हमारी अस्मिता और सांस्कृतिक मूल्यों की निशानी
बिना व्याकरण के बोली जाने वाली भाषा हो तुम तुम इतनी दूर रहीं कि कुछ भी कहा नहीं जा सकता तुम रहीं इतने पास
मन के नील हमारे यहां जब शरीर पर नील पड़ जाता है तो कहते हैं डायन खून चूस लेती है हल्का सा छू जाने
1 मैंने जब भी उसकी बात की आँखें भर कर की गालों में लाल कोंपलें फूटने तक आवाज़ के काँपने तक गर्म
ठूंठ पिता के जाने के बाद उनकी अनुपस्थिति का अहसास सबसे अधिक कही नुमाया हुआ तो वो मां का सूना माथा था बैठक
गॉंव की औरतें दौर भले हो ग्लोबल विलेज का पर अब भी भोली हैं गांव की औरतें शहर की औरतों
अगर अगर भोजन करते हुए तुम्हें इस बात की शर्म आए कि दुनिया में करोड़ों लोग भूखे हैं तो समझ लो कि तुम्हारे भीतर
आत्मकथ्य जिस रात चौबारे पर उतरी चाँदनी उस गांव में एक नयी किलकारी गूँजी चीन के हमले से करीब साल भर
पुस्तक में‘जिंदगी बुनते थे वो बिखर गए’ एक ऐसा वाक्य है जिसे पढ़ते ही भारत में प्रगति के नाम पर अमूल्य संस्कृति के लगातार हो