
कंग्डाली भाम/ विनिता यशस्वी
इस बार तो कंग्डाली भाम देखने जाना ही है आखिर इतनी बातें जो सुनी हैं इसके बारे में और फिर 12 वर्षों में भी
इस बार तो कंग्डाली भाम देखने जाना ही है आखिर इतनी बातें जो सुनी हैं इसके बारे में और फिर 12 वर्षों में भी
शबरी चर्या -1 (१) राजा के महल में तेरा स्थान नहीं, शबरीवाली इतिहास के दुर्ग के
सखी-संवाद एक सधन्यवाद पत्र सखी!जितना समझी हूँ अब तलकसंसार में सुख-दुःख की आदी परम्परा रही है,सुख अपने भीतर गिरकर उन्मादी होते हैंतो,दूसरों के भीतर बरसकर
कहे पत्रकार भोले शहर के सेठ का निकलता है अख़बार उसका नाम कितना प्यारा – जनता का समाचार सेठ जी का नाम बड़ा
मॉं की स्मृति में (1)दुख की लंबी उड़ान के बादकहाँ लौटती है आत्माएँकहाँ रीत जाता हैइच्छा के अक्षय पात्र में सिमटा
इतने पर भी मेरी एक आँखसपने देख रही हैदूसरी तारे गिन रही
मेधा : हिंदी साहित्य और न्यू मीडिया के संबंध को आप किस तरह देखते हैं ? श्रीविलास सिंह : किसी भी साहित्य को पाठकों तक पहुँचने हेतु किसी
आनन-फानन में रामेश्वरी ने अपना सामान बांध लिया और चलने को तैयार भी हो गई। गुस्से की इन्तहा इतनी थी कि मुंह से ना एक